Saini Sa'aB
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ताक़त
हर ताक़त के पीछे से
झाँकती है कोई कमज़ोरी
और जब ताक़त सरसरा कर
ज़मीन पर लोटने को बेताब हो
तो वही कमज़ोरी उठाती है
याद दिलाती है कि उसकी डोर को
कमज़ोरी ने ही बाँधा है
मुस्कराहट भी आज है
उन ढुलकते मोतियों की बदौलत
काग़ज़ी फूल जो महक रहे हैं
किसी काँटेदार शाख़ की दुआ से
कि हर बवंडर की गहराई में
छुपा होता है एक शांत स्थिर आकाश।
हर ताक़त के पीछे से
झाँकती है कोई कमज़ोरी
और जब ताक़त सरसरा कर
ज़मीन पर लोटने को बेताब हो
तो वही कमज़ोरी उठाती है
याद दिलाती है कि उसकी डोर को
कमज़ोरी ने ही बाँधा है
मुस्कराहट भी आज है
उन ढुलकते मोतियों की बदौलत
काग़ज़ी फूल जो महक रहे हैं
किसी काँटेदार शाख़ की दुआ से
कि हर बवंडर की गहराई में
छुपा होता है एक शांत स्थिर आकाश।