सर्दियों के दिन

Saini Sa'aB

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ऊन के
गोले सरीखे गुनगुने
ये सर्दियों के दिन।
उँगलियाँ
फंदे बनाती
गीत रचती
नीलवर्णी सीपियाँ
यों प्रीत रचती
और यह
मन का अकेलापन
रह-रह चुभोए पिन।
बाँटता मौसम
निमंत्रण नेह का
हो गए तन-मन कदम
कौन देहरी धर गया
दूब, अक्षत,
प्रेम का चंदन
हो गए
पाहुन सरीखे वो पराये
रेशमी से दिन
 
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