'सज्जन को 25 साल बाद कस्टडी में रखना सही नहीं'

सज्जन कुमार को जमानत देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि मामला गंभीर है, लेकिन केस की परिस्थिति को देखते हुए इतना तो तय है कि घटना के 25 साल बाद सज्जन कुमार सहित अन्य को कस्टडी में रखना न्यायसंगत नहीं होगा। जस्टिस ए. के. पाठक ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई ने जिन लोगों को गवाह बनाया है, उनमें कई ने पहले भी बयान दिया है। कुछ नए गवाह हैं, जो सज्जन कुमार का नाम ले रहे हैं। कुछ ऐसे गवाह हैं, जो कॉमन हैं और वे अब याचिकाकर्ताओं का नाम ले रहे हैं, जबकि ट्रायल के दौरान उनके बयान हो चुके हैं। जो नए गवाह 25 साल बाद सामने आए हैं, उन्हें यह बताना होगा कि पहले हुए ट्रायल के दौरान बयान के लिए वे सामने क्यों नहीं आए।

अदालत ने कहा कि इन गवाहों के बयान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता, लेकिन इन्हें बताना होगा कि पिछले ट्रायल के दौरान सामने आकर इन्होंने सज्जन कुमार का नाम क्यों नहीं लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि इस घटना के 25 साल हो चुके हैं और जमानत के मुद्दे पर खासकर यह तो कहा ही जा सकता है कि इस बात में संदेह नहीं है कि इस देरी के कारण मामला याचिकाकर्ताओं के हक में जा रहा है।

अदालत ने कहा कि इस बात में कोई दम नहीं कि आरोपियों को अगर जमानत दी गई तो गवाह डर और भय के कारण सही तरीके से बयान नहीं दे पाएंगे। अदालत ने कहा कि यह बात जाहिर है कि सज्जन कुमार पिछले 25 साल से बाहर है। वह कभी कस्टडी में नहीं रहे। 5 साल से सीबीआई मामले की छानबीन कर रही है। इस दौरान सीबीआई को खुद आरोपियों को गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं हुई।

सज्जन सहित अन्य आरोपी बाहर थे, फिर भी गवाहों ने सीबीआई के सामने आकर बयान दिए। किसी गवाह ने यह आरोप नहीं लगाया कि उसे सज्जन कुमार धमकी दे रहे हैं या फिर उसे बयान देने से रोका गया है। इतना ही नहीं, इस बात के भी प्रमाण हैं कि घटना के बाद से ही पीड़ितों व उनके रिश्तेदारों के लिए बनाए गए कैंपों में कमिशन और कमिटी से जुड़े लोगों ने दौरा किया और उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित किया था कि वे बेझिझक बयान दें। हालांकि हाई कोर्ट ने यह भी साफ किया कि केस की मेरिट पर उक्त टिप्पणी का असर नहीं होगा।
 
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