रुपया बना 'चवन्नी', तेल के दाम बढ़ेंगे?

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रुपया बना 'चवन्नी', तेल के दाम बढ़ेंगे?



मुंबई / नई दिल्ली।। मुश्किल में फंसी भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। बढ़ती महंगाई, ऊंची ब्याज दर, औद्योगिक उत्पादन की घटती रफ्तार से चिंतित भारतीय अर्थव्यस्था पर रुपये की कमजोरी की मार पड़ती हुई भी दिख रही है। बुधवार को रुपया डॉलर के मुकाबले रेकॉर्ड 53.70 रुपये पर पहुंच गया। अर्थशास्त्रियों ने आशंका जताई है कि रुपये में और कमजोरी आ सकती है। यह 55 रुपये के स्तर तक गिर सकता है।

बुधवार को रुपया एक डॉलर के मुकाबले 53.70 रुपये के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। रुपये की इस कमजोरी की मार भारतीय अर्थव्यस्था पर जल्द पड़ने वाली है। आयात और महंगा हो सकता है और तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के लिए मजबूर हो सकती हैं, जो आखिरकार महंगाई बढ़ाने में योगदान कर सकता है।

रुपये की कमजोरी को आरबीआई द्वारा रोकने की कोशिश नहीं हुई तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है। आयात आधारित उद्योग बर्बाद हो सकते हैं। खाद्य तेलों की कीमत बढ़ सकती है। साथ ही दाल की कीमतें भी काफी बढ़ सकती हैं। आम जनता के किचन का बजट बिगड़ सकता है। आरबीआई की भी अपनी परेशानियां हैं। इस कारण वह अभी डॉलर बेचने से बच रहा है। लेकिन सवाह यह उठता है कि आखिर कब तक आरबीआई चुप रहेगा।

अब 2 रुपये महंगा होगा पेट्रोल?
शहरों में हरियाली को बढ़ावा देने के के लिए सरकार पेट्रोल पर टैक्*स लगा सकती है। दिल्*ली मेट्रो के पूर्व चेयरमैन ई. श्रीधरन की अगुवाई में योजना आयोग के पैनल ने यह सिफारिश की है।

पैनल ने नई गाड़ियों पर नए टैक्*स की सिफारिश भी की है। डीजल कारों पर 20 फीसदी, जबकि पेट्रोल कारों पर 7.5 फीसदी टैक्*स लगाने की सिफारिश की गई है। पेट्रोल पर प्रतिलीटर 2 रुपये सेस (उपकर) लगाने की सिफारिश की है। यदि सरकार इन सिफारिशों को मान लेती है तो पेट्रोल फिर से महंगा हो सकता है।

औद्योगिक उत्पादन गिरा
इससे पहले सोमवार को औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े आए। इसके मुताबिक, अक्टूबर में देश के औद्योगिक उत्पादन की दर 5.1 % नीचे चली गई है। पिछले साल अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन 11.3 % बढ़ा था। पिछले 28 महीने में पहली बार औद्योगिक उत्पादन गिरा है। आशंका यह भी है कि यह स्थिति चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही के अंत तक बनी रह सकती है। उत्पादन में गिरावट की बड़ी वजह मैन्यूफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र का प्रदर्शन रहा। इससे सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं।

पिछले हफ्ते ही सरकार ने वित्त वर्ष 2012 के लिए आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया था। सोमवार को औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े जारी होने के बाद इस लक्ष्य पर भी सवालिया निशान लग गया है। औद्योगिक क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग, खनन और बिजली सेक्टर शामिल हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसकी हिस्सेदारी करीब 24% है। अक्टूबर में मैन्युफैक्चरिंग के हर सेक्टर में गिरावट आई। कैपिटल गुड्स उत्पादन तो 25.5 फीसदी कम हुआ। इससे संकेत मिलता है कि कंपनियों ने निवेश और विस्तार पूरी तरह रोक दिया है।

एलऐंडटी के चेयरमैन ए. एम. नायक ने कहा, 'मैं कहता आ रहा हूं कि जीडीपी ग्रोथ (इस साल) 7 फीसदी से ज्यादा नहीं रहेगी। मुझे डर है कि अगले साल यह 6 फीसदी तक न चली जाए।' फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ 'संकट के स्तर' तक पहुंच गई है। उन्होंने ब्याज दरों में तुरंत कटौती की मांग की। सीआईआई पहले ही इसकी गुहार लगा चुकी है।

कंज्यूमर ड्यूरेबल से भी बेरुखी
आरबीआई के पूर्व गवर्नर और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के चेयरमैन सी. रंगराजन ने कहा कि कोई भी कदम उठाने से पहले अभी कुछ और समय तक महंगाई पर नजर रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'अभी आरबीआई रुका रहेगा। जब तक महंगाई के आंकड़े साफ गिरावट का संकेत नहीं देते, तब तक शायद दरों में कटौती न हो।'

फरवरी 2009 के बाद पहली बार ड्यूरेबल और कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पादन गिरा है। यह कमजोर उपभोक्ता मांग का स्पष्ट संकेत है। मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन में अक्टूबर में 6% की गिरावट आई। जानकारों का यह भी कहना है कि ऊंचे बेस इफेक्ट की वजह से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट बड़ी लग रही है। कोटक बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदनील पान ने कहा, 'ग्रोथ सुस्त है। त्योहारी सीजन के चलते कुछ दिनों के कामकाज का भी नुकसान हुआ...कुल मिलाकर -6% का आंकड़ा गिरावट को बड़ा बना रहा है।'
 
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