पगड़ी सँभाल रे! (पंजाबी)

Saini Sa'aB

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पगड़ी सँभाल भैया, पगड़ी सँभाल रे
ये हैं भारत मंदिर अपना, हम इसके पुजारी रे
झेलेगा तू कब तक बोल, दुत्कार दुधारी रे
अपनी माटी पर मरने को, कर ले तू तैयारी रे
मौत भली इस जीवन से तो
अब मत हो बेहाल रे
गोरे जुल्मी शासक सारे, जब चिंता न करें हमारी
तब क्यों कर परवाह करें हम, सारे उनके हित की बारी
आओ हम सब मिल हुँकारे, ललकारे अरि सेना सारी
एक साथ गर मिलकर बाजें
ताली का स्वर-ताल रे
हरी-भरी फसलों को सारी, आह! लग गये कीड़े
वस्त्र नष्ट सब हुए हमारे, तन पर बाकी चिथड़े
बिलख हमारे बच्चे रोएँ, भूखे, नंगे, उघड़े
भूख, प्यास से हो निढाल हम
हुए शुष्क कंकाल रे
खान बहादुर बने हुए हैं, पिछलग्गू अंगरेज़ों के
वेश बनाए घूम रहे हैं, देशभक्त नेताओं के
बहकाते-फुसलाते हमको, धूर्त, कुटिल नित चालों से
तुम्हें फँसाने खातिर देखो
फैलाया है जाल रे
तड़प-तड़प अत्याचारों से, काया भी कुम्हलाई
जागो, उठो, सँभलो देखो, सावधान हो भाई
साहस से लड़कर जीतेंगे, खतरों भरी लड़ाई
काँटों भरी राह अंधियारी
चहूँ-दिश है जंजाल रे।
लाला बांके दयाल
अनुवादः अतुल कुमार रस्तोगी
 
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