Punjab News प्रधानगी तो बहाना, सीएम की कुर्सी है निशान&#23

पंजाब के दिग्गज कांग्रेसियों की दूरदर्शिता ही प्रदेश प्रधानगी की दावेदारी को बढ़ा रही है। दो वर्ष बाद के हालातों का आकलन कर मंझे हुए कांग्रेसी प्रदेश प्रधानगी के दावेदार बन पंजाब के संभावित सीएम की कुर्सी पर निशाना साध रहे हैं। यही कारण है कि कुछ माह पहले तक प्रधानगी के चुनाव से साफ इंकार करने वाले भी अब इस प्रक्रिया को लेकर खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं।


खास यह है कि पंजाब कांग्रेस के भट्ठल और कैप्टन गुट की तरफ से दो-दो उम्मीदवार प्रधानगी के लिए जोर लगा रहे हैं। एक की कवायद ठुस्स हुई तो दूसरा मौका संभाल सकेगा। हाईकमान ने तो इस मसले पर चुप्पी साधी हुई है, लेकिन अंदरखाते चुनाव की कवायद को तेज जरूर कर दिया है। अभी तो कमेटियां बनाने को लेकर ही वर्चस्व की जंग छिड़ गई है, लेकिन इस लड़ाई का अंतिम नतीजा पंजाब कांग्रेस के भविष्य को जरूर तय कर देगा।


ऐसे लगाए जा रहे हैं कयास


कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम की कुर्सी किसी पगड़ीधारी को ही मिलेगी, क्योंकि पंजाब की पहचान सिख बहुल क्षेत्र के तौर पर है। पंजाब का इतिहास बताता है कि राज्य के विभाजन के बाद जितने भी मुख्यमंत्री बने, सभी सिख (पगड़ीधारी) ही थे। इस समय कैप्टन अमरिंदर सिंह, जगमीत सिंह बराड़ और प्रताप सिंह बाजवा प्रधानगी पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।


जो मौजूदा समय में प्रधान तो नहीं हैं, लेकिन उनका आधार मजबूत है। प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा प्रधान मोहिंदर सिंह केपी भी प्रधानगी की कुर्सी छोड़ते नहीं दिखाई दे रहे। पंजाब का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि यहां हर पांच वर्ष बाद दूसरी पार्टी ही सत्ता संभालती है। कांग्रेसी भी यही सोच कर अगली सरकार अपनी होने का दावा कर रहे हैं।


प्रधानगी के दावेदार सोच रहे हैं कि 2012 के विधानसभा चुनाव जीत गए तो इसका सेहरा प्रदेश प्रधान के सिर ही सजेगा। जाहिर सी बात है, जो प्रधान पार्टी को जीत दिलाएगा, वह सीएम पद की दावेदारी भी मजबूती से ठोक सकेगा। सीएम की कुर्सी न भी मिली, तो सैकेंड इन कमांड का रुतबा तो हर हाल में मिलेगा।
 
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