नारायण दत्त तिवारी की खबरों ने थोड़ी राहत &#23

Arun Bhardwaj

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हमारे अखबार घोटालों, बलात्कार, दुर्घटनाओं और नेताओं की नोकझोंक से भरे होते हैं। इन सबको पढ़ना बोर करता है। लेकिन इधर नारायण दत्त तिवारी की खबरों ने थोड़ी-सी राहत दी है। ‘जियो तिवारी जी। आप तो मेरे दिल के बेहद पास हो। जुग-जुग जियो तिवारी जी!’

आखिर कितने लोग हैं, जो क्रिसमस की शाम को आपकी तरह मना सकें? कैमरे ने उन्हें तीन युवतियों के साथ पकड़ा था। वह भी उस राज्य के राजभवन में, जिसके आप राज्यपाल थे। इस तरह की हिम्मत तो सिर्फ तिवारी जी ही दिखा सकते थे। अलबत्ता इस हिम्मत ने उनसे राजभवन छुड़वा दिया। इस घटना के बाद जब वह लौटकर अपने शहर देहरादून आए, तो वहां उनका किसी हीरो की तरह स्वागत हुआ।


तभी अचानक एक शख्स चर्चा में आया। वह 32 साल का है। उसका नाम है रोहित शेखर। उसने कहा, ‘वह मेरे पिता हैं। और ऐसा मेरी मां का कहना है।’ मां उज्जवला शर्मा ने उसका समर्थन किया, ‘मैं उसकी मां हूं और नारायण दत्त उसके पिता हैं। मैं कसम खाकर कहती हूं।’ राजनीति के माहिर खिलाड़ी तिवारी जी चीखे, ‘ये सब झूठ बोल रहे हैं। मेरा इस लड़के और उसकी मां से कोई लेना-देना नहीं है।’

मां-बेटे कोर्ट चले गए। उन्होंने कोर्ट से तिवारी जी के खून का नमूना लेने की अपील की, ताकि डीएनए जांच हो सके। एक साहसी ब्राह्मण के तौर पर वह चिल्लाए, ‘कुछ नहीं हुआ है। मेरा खून बेहद कीमती है। मैं अपना खून कभी नहीं दूंगा।’ कोर्ट ने उनकी बात नहीं मानी। खून देने के ऑर्डर से वह भागते रहे। और लोग समझते रहे कि जरूर कुछ छिपाया जा रहा है। नहीं तो, कोई क्यों खून देने से भाग रहा है? आखिरकार परेशान-हलाकान तिवारी जी को अपना खून देना पड़ गया। अब आमतौर पर लोग यह मान रहे हैं कि वह उनका अपना ही लड़का है। उन लोगों ने इधर तिवारी जी और उज्जवला के साथ एक बच्चों की तस्वीर भी पेश कर दी है। यह तस्वीर मुंडन के वक्त की है।

अब जो भी हो, उस बेचारे गरीब आदमी को क्यों फंसाने में लगे हुए हैं लोग? यह बेचारा आदमी मुख्यमंत्री रहा। बाद में राज्यपाल भी बना। इधर ये मां-बेटे उनके चेहरे पर कालिख पोतने में लगे हैं। हिन्दुस्तानी इतिहास में तिवारी जी को काबिल कांग्रेसी नेता ही माना जाएगा। उनके बारे में एक तुक्कड़ काफी चलता है-

नर हूं, न नारी हूं,

नारायण दत्त तिवारी हूं।
इंदिरा का पुजारी हूं।
संजय की सवारी हूं।
यह तुक्कड़ बदनाम करने के लिए लिखा गया है। यह सही नहीं है। इसमें उनके आदमी होने पर ही सवालिया निशान लगाया गया है। लेकिन वह तो पक्के नर यानी आदमी हैं। मैं तो अपने घर की छत से खड़े होकर चिल्ला सकता हूं, ‘नारायण दत्त तिवारी जिंदाबाद! तिवारी जी तुम्हारा जवाब नहीं।'







स्रोतः खुशवंत सिंह
स्थानः नई दिल्ली
तिथिः 16 जून 2012
 
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