Palang Tod
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दुनिया भर में चर्चा में रहा "महाप्रयोग' सफल हो गया है। इस प्रयोग को सफल होने में 18 महीने की देरी हुई। इस बिगबैंग प्रयोग के लिए
मंगलवार को प्रोटोन्स का पहला सफल कलिजन रिकॉर्ड किया गया। इस प्रयोग की सफलता साइंस की दुनिया के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
18 महीने की देरी से ही सही, लेकिन मंगलवार को साइंस की दुनिया में एक नया युग शुरू हुआ। जिनीवा में 'बिग-बैंग' एक्सपेरिमेंट की शुरुआत सफल रही। लार्ज हैड्रन कोलाइडर (एलएचसी) में प्रोटोन्स का सफल कलिजन हुआ और एक्सपेरिमेंट को सफल घोषित किया गया। एक्सपेरिमेंट के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने भी काम किया है।
जब प्रयोग सफल रहा, तो यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन) का कंट्रोल रूम तालियों से गूंज उठा। इस पल के लिए दुनिया भर के कई वैज्ञानिक रिमोट कंट्रोल के जरिए कंट्रोल रूम से जुड़े हुए थे।
मंगलवार को प्रोटोन्स का पहला सफल कलिजन रिकॉर्ड किया गया। इस प्रयोग की सफलता साइंस की दुनिया के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
18 महीने की देरी से ही सही, लेकिन मंगलवार को साइंस की दुनिया में एक नया युग शुरू हुआ। जिनीवा में 'बिग-बैंग' एक्सपेरिमेंट की शुरुआत सफल रही। लार्ज हैड्रन कोलाइडर (एलएचसी) में प्रोटोन्स का सफल कलिजन हुआ और एक्सपेरिमेंट को सफल घोषित किया गया। एक्सपेरिमेंट के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने भी काम किया है।
जब प्रयोग सफल रहा, तो यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन) का कंट्रोल रूम तालियों से गूंज उठा। इस पल के लिए दुनिया भर के कई वैज्ञानिक रिमोट कंट्रोल के जरिए कंट्रोल रूम से जुड़े हुए थे।