महामशीन ने फिर तोड़ा रिकॉर्ड

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) नामक महामशीन ब्रम्हांड के रहस्यों को परत-दर-परत खोलने की दिशा में बढ़ रही है। इसी कड़ी में महामशीन ने जहां पिछले वर्ष पदार्थ के सूक्ष्म कणों की तेज गति से टक्कर कराकर भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न की थी।

वहीं अब एक बार फिर इस मशीन ने अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए इसी क्रिया को दोहराकर इस बार पहले से करीब 10 हजार गुना ऊर्जा उत्पन्न की है। जिससे इस मशीन ने अपने ही पिछले रिकॉर्ड को तोड़ने में सफलता हासिल की है। भौतिक शास्त्री आंद्रेइ गोलुटविन के अनुसार इस मशीन से वर्तमान में पहले की अपेक्षा प्रति सेकंड 10 हजार गुना ऊर्जा उत्पन्न हो रही है।

गौरतलब है कि 27 किलोमीटर की सुरंग में बनी यह मशीन फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर स्थित है। यूरोप का अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन संचालित कर रहा है। भौतिक शास्त्रियों की मानें तो यह मशीन अब तक की सबसे बड़ी ऐसी मशीन है जो इतनी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न कर रही है। साथ ही यह मशीन अब ब्रम्हांड के रहस्यों को खोलने के बेहद करीब है। इस महाप्रयोग से बिग-बैंग जैसी अंतरिक्षीय घटनाओं से पर्दा उठ सकेगा।



आइए जानें क्या है महामशीन

फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर अरबों डॉलर की लागत से चल रहे दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक परीक्षण में ब्रम्हांड के रहस्यों से जुड़े कुछ सवालों के तलाशने की कोशिश की जा रही है। कैसे पड़ा 'लार्ज हैडरॉन कोलाइडर' नाम

सर्न (यूरोपियन अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की बिग-बैंग या महाटक्कर मशीन के नाम लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में ‘लार्ज’ शब्द का प्रयोग इसकी विशालता को देखते हुए किया गया है। ज़मीन के 100 मीटर भीतर एक वृताकार सुरंग के रूप में स्थापित इस मशीन की परिधि लगभग 27 किलोमीटर है।

इसमें प्रोटॉन कणों की धारा को नियंत्रित करने के लिए बड़े-बड़े आकार के नौ हज़ार से ज़्यादा चुंबक लगे हुए हैं। चुंबकों को ठंडा रखने के लिए 10 हज़ार टन से ज्यादा तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया गया है। इस वृताकार मुख्य हिस्से के चार मुख्य पड़ावों पर लाखों कलपुर्ज़ों वाली अलग-अलग मशीनें लगाई गई हैं।

इस महामशीन के नाम में ‘हैडरॉन’ इसलिए लगाया गया है कि इसके ज़रिए नाभिकीय कणों की टक्कर कराई जाएगी। क्वार्क नामक सूक्ष्म पदार्थ से निर्मित न्यूट्रॉन और प्रोटॉन जैसे नाभिकीय कणों को हैडरॉन कहा जाता है। हैडरॉन ग्रीक भाषा के शब्द ‘एडरॉस’ से बना है, जिसका मतलब होता है भारी।

सर्न की महामशीन में कोलाइडर शब्द का सीधा-सीधा मतलब हुआ टक्कर कराने वाला। नाम में ये शब्द इसलिए लगाया गया है कि इसे सौंपा गया जो मुख्य काम है वो है- प्रोटॉन कणों की आपस में लगभग प्रकाश की गति से टकराना।

लार्ज हैडरॉन कोलाइडर के निर्माण पर कितना ख़र्च आया है?

सिर्फ़ मशीन के कलपुर्ज़ों की ही क़ीमत ही तीन अरब यूरो बैठती है। इसके अलावा क़रीब एक अरब यूरो इन कलपुर्ज़ों को जोड़ने और मशीन का रखरखाव करने वाले वैज्ञानिकों पर ख़र्च किए गए हैं। यानी कुल चार अरब यूरो की है महामशीन. रुपये में कहें तो कोई ढाई खरब रुपए।

लार्ज हैडरॉन कोलाइडर का निर्माण भूमिगत ही क्यों?

ये फ़ैसला व्यावहारिक कारणों से लिया गया। 27 किलोमीटर परिधि वाला संयंत्र ज़मीन के ऊपर बनाने पर ख़र्चा कई गुना ज़्यादा आता। ज़मीन अधिग्रहण करने का झमेला ऊपर से इस तरह के प्रयोग ज़मीन के भीतर होने का एक फ़ायदा ये भी है कि पैदा होने वाले विकिरणों को नियंत्रित करना ज़्यादा आसान होगा। इसके अलावा चूंकि सर्न के इससे पहले के प्रयोग एल-ई-पी को भी भूमिगत ही किया गया था, जिसके 2000 में पूरा हो जाने के बाद उसके लिए निर्मित सुरंगों का दोबारा उपयोग इस परियोजना के लिए किया जा रहा है।

लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में प्रोटॉन कणों की जो टक्कर कराई जाएगी उसमें निकलने वाली ऊर्जा के बारे में क्या विशेष बातें हैं?

सर्न की महामशीन के वृताकार सुरंग में बहाई जाने वाली प्रोटॉन धारा में हर प्रोटॉन कण की ऊर्जा 7 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट होगी। जो कि टक्कर के समय दुगुनी मात्रा में पहुँच जाएगी यानि 14 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट, यदि आम जीवन में हम लोगों द्वारा प्रयुक्त ऊर्जा की मात्रा से तुलना करें तो ये मात्रा कुछ भी नहीं है। विशेष बात सिर्फ़ ये है कि टक्कर की ऊर्जा बहुत ही छोटे से बिंदु पर केंद्रित होगी।

एक उदाहरण से समझाया जाए तो यदि आप ताली बजाएँ तो आपकी दोनों हथेलियों की टक्कर में सर्न की महामशीन में कराई जा रही दो प्रोटॉन कणों की टक्कर से ज़्यादा ऊर्जा निहित होती है। लेकिन इस ऊर्जा अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र में केंद्रित होती है।

एक मच्छर को भी उड़ते समय एक टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट ऊर्जा की ज़रूरत होती है, इसलिए लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में प्रोटॉन कणों की टक्कर के दौरान 14 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट की ऊर्जा कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है- इस ऊर्जा का नैनोमीटर के अरबवें-खरबवें अंश जितने अतिसूक्ष्माकार पर केंद्रित होना।
 
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