कबूतर ले उड़े थे कल मेरे नगमे इबादत के जूनुं है खानकाहों में खुदाई से बगावत के कभी रोज़े रखे हमने कभी भूखे रहे यूँही लिहाज़ा जी भी सकते थे बिना तेरी मोहब्बत के !