लिखूं कुछ तो शेर मैं भी ला-जवाब से..

~¤Akash¤~

Prime VIP
छुपायें खुद को कैसे उस बे नकाब से
रखता है रुख पे वो कई आफ़ताब से

एक तो ज़माने ने मशहूर कर दिया
कुछ सब से दुश्मनी कुछ हम हैं ख़राब से

इन मस्त निगाहों को कभी मेरे नाम कर
ये प्यास तो बुझती नहीं है अब शराब से

क्या रखते हो तुम मुझसे दुश्मनी अब भी
पूछती रहती हैं हवा भी हबाब से

बस यूँ ना कहीं दिल की बात उम्र भर उसे
टूट जाये ना दिल कहीं उसके जवाब से

यारब मुझे "इकबाल" का लहजा नवाज दे
लिखूं कुछ तो शेर मैं भी ला-जवाब से..
 
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