खो गई आशा

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
खो गई आशा

मिली थी
मिलकर कहीं फिर
खो गई आशा
कौन जाने
कब कहाँ क्या-
हो गई आशा?

सुबह का-
बेखबर होकर
देर तक सोना
रोशनी का-
इस तरह से
बेवफ़ा होना
कह रहा-
जगकर तुरत
फिर सो गई आशा।

हवाओं का बेवजह
दिन-रात बस
अफवाह ढोना
इस गुज़रते दौर का
इस कदर
लापरवाह होना
हँसी थी-
हँसकर सभी कुछ
रो गई आशा।

अकेले का अचानक
एकांत में भी
भीड़ होना
और बेचारे शहर का
भीड़ में वनवास ढोना
यों मुहजबानी
गाँव घर की
हो गई आशा
 
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