कभी कतरे की ग़मख्वारी करे है समंदर है अदाकारी करे है कोई माने ना माने उसकी मरजी मगर वो हुक्म तो जारी करे है नहीं लम्हा भी जिस की दस्तरत में वहीँ सदियों की तैयारी करे है