उम्र बस नींद-सी पलकों में दबी जाती है ज़िन्दगी रात-सी आँखों में कटी जाती है वो लरजती हुई इक याद की ठण्डी-सी लकीर क्यों मेरे ज़हन में आती है चली जाती है अपने ही घर में जब न मिला इसको आसरा, आँगन में मेरे आके खड़ी हो गई है धूप