क्यों मेरे ज़हन में आती है चली जाती है

~¤Akash¤~

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उम्र बस नींद-सी पलकों में दबी जाती है
ज़िन्दगी रात-सी आँखों में कटी जाती है

वो लरजती हुई इक याद की ठण्डी-सी लकीर
क्यों मेरे ज़हन में आती है चली जाती है

अपने ही घर में जब न मिला इसको आसरा,
आँगन में मेरे आके खड़ी हो गई है धूप
 
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