जिसका भी जी चाहे कह ले -ऐसे नहीं कभी थे पहले

जिसका भी जी चाहे कह ले
-ऐसे नहीं कभी थे पहले:

खेत सुनहले।
खेत सुनहले...

अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:

नीले फूल।

नीले फूल...

इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:

पीली सरसों।

पीली सरसों...

मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:

स्वागत हे ॠतुराज वसन्त।

स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...
 
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