गांधी जी नहीं चाहते थे कि वेतन लें सांसद

सांसदों की वेतनवृद्धि की सिफारिशों के बाद सांसदों का वेतन बढ़ना तय है। नई सिफारिशों के मुताबिक सांसदों का वेतन 80 हजार रुपए को पार कर जाएगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्*चर्य होगा कि देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्*मा गांधी सांसदों को वेतन देने के खिलाफ थे। महात्*मा गांधी नहीं चाहते थे कि सांसद किसी प्रकार का वेतन लेकर काम करें। संविधान सभा के कई सदस्*यों के अलावा शुरुआती दौर के कई नेताओं ने बिना वेतन लिए देश की सेवा की। हालांकि आधिकारिक तौर पर सभी सांसद वेतन लेते हैं। लेकिन आज भी कई सांसद ऐसे हैं, जो अपना वेतन आंशिक तौर पर ही लेते हैं। इनमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हैं जो वेतन के तौर पर एक रुपया लेते हैं। इस कड़ी में कई और नाम भी शामिल हैं।

ब्रिटिश राज में भी नहीं मिलता था वेतन

ब्रिटिश राज में भारत की केंद्रीय विधान परिषद के सदस्*यों को वेतन नाम की कोई चीज नहीं मिलती थी। अलबत्*ता उन्*हें सत्रके दौरान यात्रा भत्*ता जरूर दिया जाता था। वह भी इतना कि जिससे यात्रा का खर्च उठाया जा सके। 1954 में बना सांसदों को वेतन- भत्*ता देने का कानून संवैधानिक तौर पर भारतीय संसद का गठन 1952 में हुआ। उसके दो साल बाद 1954 में सांसदों का वेतन-भत्*ता कानून बना। उसके बाद से करीब 25 बार से भीअधिक सांसदों के वेतन- भत्*ते और अन्*य सुविधाओं में बढ़ोतरी हो चुकी है। लेकिन बीते कुछ सालों से सांसदों का वेतन-भत्*ता बढ़ाए जाने की प्रक्रियापर सवाल उठने शुरू हुए हैं।

सांसद वेतन वृद्धि मामले में विदेशी सांसदों को मिलने वाले वेतन एवं अन्*य भत्*तों का तर्क देते हैं। लेकिन यह बात भूल जाते हैं कि अमरीका, जर्मनी, फ्रांस सहित यूरोप तथा अन्*य विकसित देशों के जनजीवन और भारतीय जनजीवन में कितना अंतर है। भारत में आज भी 84 करोड़ लोग मात्र 20 रुपया प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं। एक-तिहाई जनता कुपोषण का शिकार है।

वामदल करेंगे विरोध

सांसदों के अपना वेतन खुद बढ़ाए जाने की प्रक्रिया का वामदल पिछले काफी समय से विरोध करते आ रहे हैं। वामदलों के सदस्*य संसद की इस समिति का भी विरोध करते रहे हैं। अगस्*त 2006 में भी वामदलों ने सांसदों के वेतन-भत्*ते बढ़ाए जाने का यह कहते हुए विरोध किया था कि सांसदों के अपना वेतन खुद बढ़ा लेने से जनता में अच्*छा संदेश नहीं जाता। इस बारे मेंमाकपा पोलित ब्*यूरो के सदस्*य सीताराम येचुरी का कहना है कि हम इसका विरोध करेंगे। इसलिए हम इस समिति में नहीं गए। उनका कहना है कि हम इस बात को अच्*छा नहीं मानते कि सांसद अपना वेतन खुद तय करें।

ज्ञात हो कि संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि सांसदों का वेतन बढ़ाकर 80 हजार कर दिया जाना चाहिए। जो देश विश्*व बैंक के कर्जदारों की सूची में पहले स्*थान पर हो, उस देश के लिए यह सोचने का विषय हो सकता है। संसद के आगामी मानसून सत्र में इस सिफारिश को स्*वीकार कर लिए जाने की पूरी संभावना है। इस काम को भी कुछ ऐसे ही अंजाम दिया जा सकता है जैसे बीते साल के अंत में संसद सत्र के आखिरी दिन मंत्रियों का वेतन बढ़ाने वाला बिल बिना किसी बहस के अन्*य चार बिलों के साथ एक घंटे से भी कम समय में पास करा लिया गया था। यह अपने आप में लोकतांत्रिक व्*यवस्*था का मखौल है कि सांसद खुद अपने वेतन-भत्*ते तय करने का काम करते हैं। सांसदों के वेतन-भत्*ते आदि को तय करने के लिए किसी नए निर्धारण तंत्र (आयोग) विकसित करने और कानून में संशोधन की बात विभिन्*न राजनीतिक मंचों से समय-समय पर उठती रही है और इस पर सैद्धांतिक सहमति भी बन चुकी है। वामदल इसके लिए दबाव भी बनाते आ रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। जाहिर है सांसद अपने वेतन -भत्*तों की बढ़ोतरी के लिए किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं चाहते। सांसद चरणदास महंत की अध्*यक्षता वाली समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्*यक्ष मीरा कुमार तथा राज्*यसभा के सभापति हामिद अंसारी को बीते 5 मईको अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है।
 
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