सैय्याद उड़ ना जाऊँ कफस ले के मैं कहीं मेरा इम्तहान ना ले पर काटने के बाद...... दुआ कौन सी थी ज़हन में याद नहीं बस इतना याद है दो हथेली जुडी थी एक मेरी थी एक तुम्हारी थी.............................