डा. राजेंद्र प्रसाद को भी नहीं बख्*शा कांग्&#2

देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवनकाल में शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस कांग्रेस पार्टी की उन्होंने आजीवन सेवा की, उसी के नेता उन्हें 1940 में शिक्षण संस्था खोलने के लिए मिली जमीन पर अवैध कब्जा कर लेंगे। लेकिन सच यही है। नौबत यहां तक आ पहुंची कि अब प्रधानमंत्री कार्यालय को हस्तक्षेप करना पड़ा है। पीएम हाउस इस सारे मामले का संज्ञान लेते हुए झारखंड सरकार को एक पत्र भेज कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

देश रत्*न डा. राजेंद्र प्रसाद ट्रस्ट द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को इस बाबत भेजी गई एक शिकायत के बाद पीएमओ दफ्तर से झारखंड सरकार को एक पत्र भेजा गया, जिसमें इस पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए गए हैं। झारखंड संस्कृति विभाग के सहायक संचालक हरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने बताया कि उन्*होंने इस मामले को दुमका के डिप्टी कमिश्नर को जांच के लिए भेज दिया है। यदि 15 दिन में इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हम एक बार फिर रिमांइडर भेज देंगे।

डा. राजेंद्र प्रसाद अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। उन्*होंने शिक्षा को हमेशा पहली प्राथमिकता दी। उनकी इसी भावना को देखते हुए दुमका के एक व्यवसायी रामजीवन हिम्मत सिंह ने वर्ष 1940 में उन्हें करीब 3.5 एकड़ जमीन शिक्षण संस्था खोलने के लिए दान में दी। दुमका-पाकुर हाईवे पर स्थित इस जमीन की कीमत अब बढ़कर करीब 10 करोड़ हो गई है।

कांग्रेस के कुछ नेताओं की इस जमीन पर कई सालों से नजर थी। डा. राजेंद्र प्रसाद का 1963 में निधन के बाद 1970 में कांग्रेस ने इस कीमती जमीन को हथियाने की कोशिश शुरू कर दी। पार्टी नेताओं का तर्क था कि डा प्रसाद कांग्रेस के सदस्य थे, और इसीलिए, यह जमीन कांग्रेस पार्टी के नाम की जाए। कांग्रेस ने 19 अप्रैल 1976 को दुमका के सर्कल आफिस में एक आवेदन देकर जमीन को पार्टी के नाम ट्रांसफर करने की मांग की। हालांकि जमीन की गिफ्ट डीड में कांग्रेस का नहीं, बल्कि डा राजेंद्र प्रसाद का नाम था। उस समय बिहार का विभाजन नहीं हुआ था और सरकार कांग्रेस की थी।

जमीन के दानदाता ने इस बारे में आपत्ति भी की। लेकिन प्रशासन ने जमीन कांग्रेस के नाम ट्रांसफर कर दी। वर्ष 2000 में वहां कांग्रेस की नई इमारत का शिलान्*यास भी कर दिया गया। डा राजेंद्र प्रसाद मेमोरियल ट्रस्ट ने 2007 में दुमका की रेवेन्यु कोर्ट में इस मामले को लेकर फिर अपील की। अपने निर्णय में अदालत ने कांग्रेस को दी गई जमीन के आदेश को निरस्त कर दिया। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने डिप्टी कमिश्नर आफिस में 2008 में फैसले के खिलाफ अपील की जिस पर अभी निर्णय होना है।
 
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