बहुत याद आता है बचपन सुहाना

बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा जमाना

वो गर्मी के मौसम में आमो का आना
वो कच्ची कैरी की चटनी बनाना
वो आमो का पकना वो उनका टपकाना
खुद ही उठाना उठा के खाना
जैसे मिला हो कोई खजाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा जमाना


लाइट का जाना वो छत पे अपना जाना
वो अपना घंटो बतियाना
वो माँ का बुलाना ना सुनना ना जाना
वो माँ की डाटो से रूठ जाना
वो पापा का हँसना ,हंसा के मानना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा

वो बारिश का आना वो बिजली का चमकना गर्जना
वो डर के भैया की हथेली पकड़ना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा ज़माना

वो सर्दी की रातो में माँ का राह ताकना
वो कोहरे भरी रातो में पापा का आना
वो माँ के हाथो के आलू पराठे
बहुत भाता था पापा के हाथो से खाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा ज़माना

वो भैया दीदी से लड़ना झगड़ना
वो रूठना मानना
वो एक दूजे के कपडे बदल के पहनना
वो एक ही थाली में हम सब का खाना
बहुत याद आता है बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा जमाना

बहने है मेरी अपने संसार में ग़ुम
अब माँ भी रहती है भैया के संग
पापा ने चंदा पे है घर बसाया
तरसती है आँखे मेरी उन्हें देखने को
मै भी अपने परिवार में खुश
मगर दिल ये कहता है
काश लौट आता बचपन सुहाना
वो गुजरा जमाना , वो गुजरा जमाना
 
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