अंकुर सम जन्मे हो तुम, अब व्रक्ष रूप भी बन जाओगे, लेकिन जब पतझङ आयेगा पत्ता-पत्ता झङ जाओगे जैसे भोर भये दिन चढता सांझ भये फिर ढल जाता है जीवन हो तुम एक दिवस के सांझ के जैसे ढल जाओगे