Palang Tod
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जब हिंसा फैलती है तो वह केवल शांति को खत्म नहीं करती, बल्कि कहीं न कहीं देश की अर्थ व्यवस्था को भी प्रभावित करती है। इस्लाम में अमन के लिए मोहम्मद सा. ने कई उपदेश दिए हैं लेकिन कालांतर में इसमें हिंसा का प्रवेश भी हो गया। इस्लाम जहां से जन्मा है वहां व्यापार और हिंसा समानांतर दिखते हैं। लेकिन यह एक साथ नहीं हो सकते, यह विरोधाभास भी इस्लाम में दिखता है।
आतंक, अत्याचार और हिंसा अमन को ही खत्म नहीं करते बल्कि तिजारत (व्यापार) को भी बर्बाद करते हैं। आज के दौर में जब जीवनशैली जरूरत से ज्यादा व्यवसायिक हो गई है तब धर्म को भी नई दृष्टि से देखा जाना चाहिए। इस्लाम अरब की जमीन से उपजा था, जहां के बाशिंदों का पेशा या तो लूटमार था या व्यापार। अरब वालों ने जब इस्लाम को कबूल किया तो शुरुआत में उन लोगों ने इस्लाम में ऐसी ही जीवनशैली प्रवेश करा दी जबकि कायदा यह है कि बिना युद्ध के लूटमार नहीं हो सकती और बिना शांति के व्यवसाय नहीं हो सकता। इसलिए इस्लाम में युद्ध और शांति दोनों पक्ष एकसाथ चलने लगे। जब युद्ध प्रेमियों का मौका आया तो जंग ने इस्लाम को घेर लिया और अमन परस्त लोगों का प्रभाव बढ़ा तो इस्लाम के आसपास प्रेम ही प्रेम नजर आया।
एक वक्त ऐसा आया था ८वीं से ११वीं सदी के बीच की दुनिया का ज्यादातर व्यापार अरब लोगों के हाथ में पहुंच गया था। सौदागरों के बिस्तर हीरे, जवाहरात से बनने लगे थे। यहीं से ताकतवर लोगों को यह बात समझ में आ गई कि तिजारत यानी व्यापार करने के लिए खून-खराबा छोड़ना पड़ेगा। इल्म को हमेशा से अमन का इंतजार रहता है। बस यहीं से इस्लाम में अमन की बात जो इधर-उधर हो रही थी स्थापित होने लगी जो आज तक वैसी की वैसी ही है। इस्लाम जिन गलियों से गुजरा वहां कितना ही विपरित दौर रहा हो लेकिन शांति और प्रेम की बातें मोहम्मद से लेकर आज तक वैसी की वैसी हैं। जो बात हजारों साल पहले लागू हो रही थी कि अमन के रहने से विकास होता है वह आज भी जरूरी है। देशों के बीच धार्मिक मदभेद खत्म हों और तिजारती ताल्लुकात बढ़ें इसके नतीजे हर लिहाज से फायदे मंद होंगे।
आतंक, अत्याचार और हिंसा अमन को ही खत्म नहीं करते बल्कि तिजारत (व्यापार) को भी बर्बाद करते हैं। आज के दौर में जब जीवनशैली जरूरत से ज्यादा व्यवसायिक हो गई है तब धर्म को भी नई दृष्टि से देखा जाना चाहिए। इस्लाम अरब की जमीन से उपजा था, जहां के बाशिंदों का पेशा या तो लूटमार था या व्यापार। अरब वालों ने जब इस्लाम को कबूल किया तो शुरुआत में उन लोगों ने इस्लाम में ऐसी ही जीवनशैली प्रवेश करा दी जबकि कायदा यह है कि बिना युद्ध के लूटमार नहीं हो सकती और बिना शांति के व्यवसाय नहीं हो सकता। इसलिए इस्लाम में युद्ध और शांति दोनों पक्ष एकसाथ चलने लगे। जब युद्ध प्रेमियों का मौका आया तो जंग ने इस्लाम को घेर लिया और अमन परस्त लोगों का प्रभाव बढ़ा तो इस्लाम के आसपास प्रेम ही प्रेम नजर आया।
एक वक्त ऐसा आया था ८वीं से ११वीं सदी के बीच की दुनिया का ज्यादातर व्यापार अरब लोगों के हाथ में पहुंच गया था। सौदागरों के बिस्तर हीरे, जवाहरात से बनने लगे थे। यहीं से ताकतवर लोगों को यह बात समझ में आ गई कि तिजारत यानी व्यापार करने के लिए खून-खराबा छोड़ना पड़ेगा। इल्म को हमेशा से अमन का इंतजार रहता है। बस यहीं से इस्लाम में अमन की बात जो इधर-उधर हो रही थी स्थापित होने लगी जो आज तक वैसी की वैसी ही है। इस्लाम जिन गलियों से गुजरा वहां कितना ही विपरित दौर रहा हो लेकिन शांति और प्रेम की बातें मोहम्मद से लेकर आज तक वैसी की वैसी हैं। जो बात हजारों साल पहले लागू हो रही थी कि अमन के रहने से विकास होता है वह आज भी जरूरी है। देशों के बीच धार्मिक मदभेद खत्म हों और तिजारती ताल्लुकात बढ़ें इसके नतीजे हर लिहाज से फायदे मंद होंगे।