आँगन की तुलसी

Saini Sa'aB

K00l$@!n!
आँगन की तुलसी

ऐसी धुंध पड़ी
आँगन की तुलसी सूख गई

अम्मा के
कातिक नहान की साखी भरती थी
देर रात तक सँझबाती से बातें करती थी
वत्सल होकर मानस की चौपाई गाती थी
अम्मा के गीतों भजनों की
टेक उठाती थी

सरस मंजरी
विरस हवा के झाँसे चूक गई

अम्मा चिंतित
सिझी रसोई भोग लगे कैसे
जोग छेम के नेम धरम अब टूटेंगे जैसे
लोक वेद का संग छूटेगा क्या रह जाएगा
बाजारू सपना घर आँगन
भरम उगाएगा

गँठजोड़ी
मनौतियाँ बिखरेंगी हो टूक कई
 
Top