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बठिंडा शायर सुरिंदर प्रीत घनिया ने आरोप लगाया है कि उनकी गजल को सूफी गायक सतिंदर सरताज ने चोरी कर लिया है। उनका कहना है कि सरताज ने शायर तरलोक जज की भी साहित्यिक चोरी की थी, जिसके लिए उन्होंने लिखित माफी मांगी थी।
सुरिंदर प्रीत घनिया का शेर : जमीनां मंहगियां बिकियां, जमीरां सस्तियां बिकियां। बड़ी छोटी जी कीमत ते ने बड़ीयां हस्तियां बिकियां। कुड़ी दीयां रीझां, चावां, सधरां दा जद बनज होया सी, कि टूमां मंहगियां बिकियां ते सधरां सस्तियां बिकियां।
सरताज ने गाया : जमीनां महंगीयां एैथे जमीरां सस्तियां ने, तुसीं अनुमान लावो कौन वडीयां हस्तियां ने।
स्कूल स्टाफ भी हुआ हैरान : घनिया सरकारी स्कूल भोखड़ा में कार्यरत हैं वहां कई समारोहों पर वह इस गजल को अनेक बार गा चुके हैं। उन्होंने जब टीवी के एक चैनल पर सरताज के मुंह से इसे सुना तो वह दंग रह गए। इस संबंध में स्कूल के लोगों ने भी उन्हें फोन किए। इसके अलावा वह यह गजल टीवी, रेडियो के अलावा दर्जनों कवि सम्मेलनों में भी बोल चुके हैं।
यह गजल 2006 में लिखी
शायर घनिया ने बताया कि उसने यह गजल 2006 में लिखी थी। गाने के लिए काफी लोग उनसे यह गजल मांग कर चुके थे, लेकिन उन्होंने यह गजल इंदौर घराने के गायक अपने बेटे अनमोलप्रीत घनिया के लिए रखी थी। सरताज ने इसको गाकर उनको मानसिक रूप से परेशान किया है।
जैतोई के शागिर्द हैं घनिया
सुरिंदर प्रीत घनिया पंजाबी गजल के बाबा बोहड़ जनाब दीपक जैतोई के शागिर्द हैं घनिया की काव्य पुस्तक हरफां दे पुल भी काफी चर्चा में है। अवार्ड प्राप्त इस पुस्तक के दो आडीशन बिक चुके हैं।
गजल के शेर चोरी होने से मैं मानसिक तौर पर परेशान हुआ हूं। कम से कम सरताज जैसे गायक को ऐसा नहीं करना चाहिए था अगर उसको ये गजल अच्छी लगी तो वे उनसे मांग सकते थे। मां सरस्वती ने उनको अच्छी आवाज दी है तो वे इसका सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं।
सुरिंदर प्रीत घनियां, शायर
हमारा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं था। ये हमारी रचना है और जिसकी कुछ लाइनें सुरिंदर प्रीत घनिया के शेरों से मिल गई। हमारे लिए सभी शायर सम्माननीय हैं। हमने ये जानबूझ कर नहीं किया। इसको हमने अभी तक महफिलों में तो नहीं गाया लेकिन ये काफी देर पहले लिखा गया था।
सतिंदर सरताज
सुरिंदर प्रीत घनिया का शेर : जमीनां मंहगियां बिकियां, जमीरां सस्तियां बिकियां। बड़ी छोटी जी कीमत ते ने बड़ीयां हस्तियां बिकियां। कुड़ी दीयां रीझां, चावां, सधरां दा जद बनज होया सी, कि टूमां मंहगियां बिकियां ते सधरां सस्तियां बिकियां।
सरताज ने गाया : जमीनां महंगीयां एैथे जमीरां सस्तियां ने, तुसीं अनुमान लावो कौन वडीयां हस्तियां ने।
स्कूल स्टाफ भी हुआ हैरान : घनिया सरकारी स्कूल भोखड़ा में कार्यरत हैं वहां कई समारोहों पर वह इस गजल को अनेक बार गा चुके हैं। उन्होंने जब टीवी के एक चैनल पर सरताज के मुंह से इसे सुना तो वह दंग रह गए। इस संबंध में स्कूल के लोगों ने भी उन्हें फोन किए। इसके अलावा वह यह गजल टीवी, रेडियो के अलावा दर्जनों कवि सम्मेलनों में भी बोल चुके हैं।
यह गजल 2006 में लिखी
शायर घनिया ने बताया कि उसने यह गजल 2006 में लिखी थी। गाने के लिए काफी लोग उनसे यह गजल मांग कर चुके थे, लेकिन उन्होंने यह गजल इंदौर घराने के गायक अपने बेटे अनमोलप्रीत घनिया के लिए रखी थी। सरताज ने इसको गाकर उनको मानसिक रूप से परेशान किया है।
जैतोई के शागिर्द हैं घनिया
सुरिंदर प्रीत घनिया पंजाबी गजल के बाबा बोहड़ जनाब दीपक जैतोई के शागिर्द हैं घनिया की काव्य पुस्तक हरफां दे पुल भी काफी चर्चा में है। अवार्ड प्राप्त इस पुस्तक के दो आडीशन बिक चुके हैं।
गजल के शेर चोरी होने से मैं मानसिक तौर पर परेशान हुआ हूं। कम से कम सरताज जैसे गायक को ऐसा नहीं करना चाहिए था अगर उसको ये गजल अच्छी लगी तो वे उनसे मांग सकते थे। मां सरस्वती ने उनको अच्छी आवाज दी है तो वे इसका सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं।
सुरिंदर प्रीत घनियां, शायर
हमारा मकसद किसी का दिल दुखाना नहीं था। ये हमारी रचना है और जिसकी कुछ लाइनें सुरिंदर प्रीत घनिया के शेरों से मिल गई। हमारे लिए सभी शायर सम्माननीय हैं। हमने ये जानबूझ कर नहीं किया। इसको हमने अभी तक महफिलों में तो नहीं गाया लेकिन ये काफी देर पहले लिखा गया था।
सतिंदर सरताज