गयी शाम का रतजगा

Saini Sa'aB

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गयी शाम का रतजगा सरदी ताबेदार
नये साल की शान में एक और त्यौहार
तितली जैसे उड़ रहे सजे रिबन रंगीन
गुब्बारों की ओट में हर बंदा संगीन
खड़ी दूब मोती लिये धूप दुशाला गर्म
सुबह अँगीठी सी लगे नये साल के संग
कोहरा पहने ऋतु चढ़ी मौसम का दरबार
नया साल कहने लगा आदाब'र्ज सरकार
पिछला संवत चल दिया अपनी लाठी टेक
नया बर्फ सा कुरकुरा, मूँगफली-सा नेक
गमले भर गुलदावदी क्यारी भरे गुलाब
आसमान कोहरा भरा ठंड उमगता माघ
दिशा दिशा में दीप रख द्वारे बंदनवार
नया साल खुशियाँ भरे सर्दी हो गुलनार
 
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