आज मचली हुई सावन की घटा लगती हो

~¤Akash¤~

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तुम जो हंसती हो तो फूलो की अदा लगती हो
और चलती हो तो एक बाद-ऐ-सबा लगती हो

दोनों हाथों में छुपा लेती हो अपना चेहरा
मशरिकी हूर हो दुल्हन की हया लगती हो

कुछ न कहना मेरे कंधे पे सर को झुका कर
कितनी मासूम हो तस्वीर-ऐ-वफ़ा लगती हो

बात करती हो तो सागर से खनक जाते हैं
लहर का गीत हो कोयल की सदा लगती हो

किस तरफ जाओगी ज़ुल्फ़ के ऐ बादल ले कर
आज मचली हुई सावन की घटा लगती हो
 
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