वो अन्ना का अरविन्द काल था, ये संतोष काल है

Arun Bhardwaj

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कल लिखने का मन नहीं था । लिखता भी तो क्या । यही के अन्ना का कार्यक्रम ऐसा था वैसा था, अन्ना और उनकी बातें उनका लहज़ा उनकी सोच वैसी ही है जैसी पहले थी । वो अन्ना का अरविन्द काल था, ये संतोष काल है । इसलिए कुछ नहीं लिखा । मैंने अन्ना को एक बुजुर्ग की तरह ही लिया जिसकी बातें कुछ देर रुक के सुन लेने में कोई बुराई नहीं है । यू भी क्या अच्छा हो रहा है हमारे आस पास जो मैं सिर्फ अन्ना में कमी निकालूँ . हाँ उनके पूर्व के आन्दोलन में जनसमर्थ को देखते हुए लगता था के कुछ हो सकता है पर अन्ना और उनके साथी कुछ कर न सके ।

श्री किशन बाबुराव हजारे एक मुखौटा थे । जैसा के हर संघटन के पास होता है। राजनितिक दल के पास होता है । वो झक सफ़ेद धोती वो झक सफ़ेद कुर्ता वो अरुण गवली टोपी । मूल्यपरक हिंदुस्तानी मुखौटे का पूरा सामान । आज भी वे मुखौटा ही हैं । मदारी बदल गए हैं अन्ना वही हैं ।

इस बार अन्ना का एजेंडा देश के सबसे निर्भीक और विश्वसनीय पत्रकार श्री संतोष भारतीय तय करते प्रतीत होते हैं । आज वे राजनितिक दलों को खारिज करने की वकालत कर रहे हैं पर अपने चौथी दुनिया के कार्यक्रमों में ऐसे ही लोगों को बुलाते रहे हैं । मुझे याद है एक बार जब जनरल वी के सिंह सरकार को सुप्रीम कोर्ट ले गए थे तब चौथी दुनिया में रूबी अरुण जी ने एक लेख लिखा था । उन्होंने लिखा था कि कोर्ट इससे पहले कोई फैसला देता सरकार के कुछ मंत्री चीफ जस्टिस या सम्बंधित जजों से मिले और कहा कि यदि फैसला जनरल के हक में गया तो गजब हो जायेगा । उसके बाद क्या हुआ सबको पता है ।

लेख कोई एक दिन ही साईट पे रहा होगा फिर उसे हटा लिया गया । हो सकता है रूबी अरुण जी के तथ्य गलत हों पर उन्होंने मुझे फसबुक पे बताया कि शायद चौथी दुनिया सरकार के दवाब में आ गया ।

अरे-अरे खामखाँ का विषयांतर हो गया …… तो मेरा मतलब ये था कि अन्ना चाहें जो करें, प्रसन्न रहे मौज करें । जब तक है धोती …ज़ब तक है कुर्ता ……. जब तक है गवली टोपी …… जब तक है जां ……. तब तक रंगमंच पे ये शो चलते रहेंगे । इस जीवन को जीने के लिए कुछ मायने चाहिए कुछ बहाने चाहिए । ये न हों तो जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर ही ख़त्म सा हो जाता है । एक स्थिति के बाद मौत भी साथ नहीं देती साँसे चलती रहती हैं । बेमानी सी । बेमतलब सी । अटल सी । बिहारी सी । वाजपेयी सी।

लाऊड स्पीकर कान पे ही बज रहा था । जो समाजसेवी मेरे पास बैठे मुझसे बातें कर रहे थे , वे न तो खुद उठ रहे थे न मुझे उठने दे रहे थे । घर आते आते महसूस हुआ साला बी . पी . बढ़ गया है । कई महीनों बाद दवा ली । अब राहत है ।

कुछ समय पहले की बात है , मुझे लगने लगा के मेरा खून खौलने लगा है । संवेदनशील मैं जनम से रहा हूँ । किसी ने एक चपत मारी तो पलट मैं ज़रूर करता था । तो आस पास के माहौल को देख कर एक कुंठा घर कर गयी थी । अन्दर ही अन्दर उबाल आता रहता । आँखें लाल । लगता अभी खून आँखों से टपक जायेगा । मैं रोज़ सुबह शाम दुष्यंत ( वाह वाह दुष्यंत …… यशवंत) की साए मे धूप का पाठ करता । नेताओं को व्यापारियों को सबको कोसता । हमारी माताजी में समझ नहीं है । वे मुझे कोसतीं । खैर एक सयाना मित्र मुझे डॉक्टर के पास ले गया वो तो उस डॉक्टर ने बताया के मुझे उच्च -रक्तचाप है । क्या समझते थे क्या निकला । उस दिन मुझे लगा इन वामपंथियों का रक्तचाप एक बार ज़रूर नापना चाहिय ।

सोच रहा हूँ कि अन्ना को भी उस टिकिया का नाम बता दूँ जो मैं लेता हूँ। Losanol H । तो ठीक है आर्य, अब चलूं अन्ना को संदेसा भेज दूँ, उस टिकिया का नाम बता दूँ ।

पिछले दिनों अन्ना बरेली पहुंचे थे, अपनी यात्रा के क्रम में, उसी दौरान वहां पहुंचे एक भाई साब ने यह सब लिखकर भड़ास के पास भेजा है, और नाम न छापने का भी अनुरोध किया है. संभवतः नाम इसलिए नहीं छापने का अनुरोध किया है कि फिर कहीं बीपी न बढ़ जाए.
 
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