समझे थे उसे दीवाना क्या

~¤Akash¤~

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जोगी जी रुको एक बात सुनो
घर छोड़ के वन में जाना क्या
हर साँस में उसका ज़िक्र है जब
फिर बस्ती क्या, विराना क्या!

सरमद ने पड़ा क्यूँ आधा कलमा
मीरा क्यूँ जोगन बन बैठी
क्यूँ गौतम ने घर छोड़ दिया
ये राज़ किसी ने जाना क्या!

दुनिया के खातिर दुःख झेले
घर-बार लुटा शूली पे चडे
वो लोग तो सच्चे थे लिकिन
जग ने उनको पहचाना क्या!

क्या ईद दिवाली की खुशिया
क्या होली क्रिश्मस बैसाखी
मुफ्लिश की जेब तो खली है
त्यौहार का आना-जाना क्या!

"सुकरात" है खामोश मगर
ये ज़हर का प्याला कहता है
सच्चाई जहा दम तोड़ चुकी
वहा जीना क्या मर जाना क्या

माना तुम अच्छे रहबर हो
फिर देश में क्यूँ बदहाली है
कौसर इस राज़ से बाकिफ था
समझे थे उसे दीवाना क्या
 
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