अब भी दिलकस है तेरा हुश्न मगर क्या कीजे और भी दुःख है ज़माने में मोहब्बत के सिवा रहते और भी है वस्ल की रहत के सिवा मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग !