क्या करते हो बात ऊँचाइओ की

क्या करते हो बात ऊँचाइओ की
रोज आसमानों को छू लिया करते है


क्या करते हो बात इम्तिहानो की
रोज मुश्किलों का सामना किया करते है


क्या करते हो बात आशिअनो की
रोज बाहर रात बसर किया करते है


क्या करते हो बात तन्हाईयो की
रोज खुद ही से बातें किया करते है


क्या करते हो बात पैमानों की
रोज जी भर के पिया करते है


क्या करते हो बात ज़माने की
रोज लाखो ही सितम लोग किया करते है


क्या करते हो बात ज़ख्मो की
रोज कितने अपने हाथो से सिया करते है


क्या करते हो बात चले जाने की
रोज मर मर के जिया करते है


कलम:- हरमन बाजवा ( मुस्तापुरिया )

 
Top