Old Lyrics जितनी लिखी थी मुक़द्दर में - मोहम्मद रफ़ी

Dhillon

Dhillon Sa'aB™
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जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके
जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके
अब तो दिन मरने के है
जितना जीना था
जी चुके
जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके

ये ज़माने अब न आना
हमको समझाने कभी
ये ज़माने अब न आना
हमको समझाने कभी
अपनी कह ली सबकीसुन ली
होठ अब तो सी चुके
अपनी कह ली सबकी सुन ली
होठ अब तो सी चुके
अब तो दिन मरने के है
जितना जीना था जी चुके
जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके
अब हमारी खुश्क आँखों में
न कुछ ढूंढे कोई
अब हमारी खुश्क आँखों में
न कुछ ढूंढे कोई
अश्क जितने इन में थे
हम पी चुके
हम पी चुके
अश्क जितने इन में थे
हम पी चुके
हम पी चुके
अब तो दिन मरने के है
जितना जीना था जी चुके
जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके

ज़िन्दगी और मौत दोनों
एक है अपने लिए
ज़िन्दगी और मौत दोनों
एक है अपने लिए
अब किसी को क्या बताये
मर चुके या जी चुके
अब किसी को क्या बताये
मर चुके या जी चुके
अब तो दिन मरने के है
जितना जीना था जी चुके
जितनी लिखी थी मुक़द्दर में
हम उतनी पी चुके

घर से बेघर हो गए
अब घर की याद आये तो क्यों
घर से बेघर हो गए
अब घर की याद आये तो क्यों
ज़िन्दगी पीछा न कर
हम जी चुके
हम जी चुके
ज़िन्दगी पीछा न कर
हम जी चुके
हम जी चुके
जी चुके
जी चुके
जी चुके
जी चुके.
 
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