वनवासों मैं उम्र कटी रातें बीती रोते रोते
तब जाके ये भेद खुला सोने के हिरन नहीं होते...............
मेरी बातों से ज़माने को ख़ुशी होने लगी
मैं लगा बुझने तो मुझमें रौशनी होने लगी
हर पराये दर्द को महसूस हम करते रहे
और वो ज़ज्बा भी आया शायरी होने लगी.............