अश्क पलकों पे आकर बिखरते रहे

~¤Akash¤~

Prime VIP
रात कटती रही चाँद ढलता रहा
आतिशे-हिज्र में कोई जलता रहा
घर की तनहाइयाँ दिल को डसती रही
कोई बेचैन करवट बदलता रहा
आस-ओ-उम्मीद की शमा रोशन रही
घर की देहलीज़ कोई तकता रहा
रात भर चांदनी गुनगुनाती रही
रात भर कोई तनहा सिसकता रहा
अश्क पलकों पे आकर बिखरते रहे
नाम लब पर किसी का लरजता रहा
आज फिर रात बसर हो ही गई
आज फिर कोई खुद से उलझता रहा......
 
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