तन्हाई का ज़शन मनाता रहता हूँ खुद को अपने शेर सुनाता रहता हूँ वो भाषण से आग लगाते रहते है मैं ग़ज़लों से आग बुझाता रहता हूँ जन्नत की कुंजी है मेरी मुट्ठी मे अपनी माँ के पाँव दबाता रहता हूँ.............