मुखिया से दूधिया तक

Arun Bhardwaj

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राजदूत मोटरसाइकिल तो याद है न । आज की पीढ़ी को क्या पता राजदूत के बारे में । काले रंग की मोटरसाइकिल । ग्रामीण समृद्धि की निशानी । शहरों में एम्बेसडर, फ़िएट और गाँवों में राजदूत । एक अंतर और । जिस वक्त शहर और सिनेमा में कमल हसन येज़्दी बाइक पर हिरोइन घुमाया करते थे, गाँवों में राजदूत अर्ध सामंती प्रतीक हुआ करती थी । ज़्यादातर मुखिया जी के पास राजदूत तो होती ही थी । शाम को कचहरी या तहसील से लौटते मुखिया जी की मोटरसाइकिल गाँव वाले दूर से ही भाँप लेते थे । हमारे मुखिया जी ने भी राजदूत को बेटे की तरह रखा । बेटी की तरह नहीं शायद । शान से बताते थे कि पंद्रह बरीस भइल । राजदूत की ख़ूबी यही थी । तिरछा स्टैंड पर बाइक टिका देना और किक मारते समय बैक जंप के कारण धोती वाले पाँव का छिटक जाना । आगे पीछे किसीम किसीम के गार्ड । राजदूत के अनगिनत किस्से होंगे भारत के गाँवों में । उन्हें जानने वाले उनकी मोटरसाइकिल की आवाज़ पहचानते थे और नंबर याद रखते थे ।

वक्त बदला । पंचायती राज ने पंचायतों को खूब पैसा और अधिकार दिया । उस नए अधिकार से मैच करने के लिए नई सवारी भी चाहिए थी । इससे पहले कि बोलेरो मुखियई की पहचान बनती गाँव गाँव में दहेज़ में मिले इंड सुज़ुकी और हीरो होंडा बाइक ने तूफ़ान मचा दिया । ये दोनों ही ब्रांड सिर्फ और सिर्फ दहेज़ के कारण ग्रामवासिनी हुए । भोजपुरी के कई गाँवों में दहेज़ में हीरो होंडा का ज़िक्र खूब आया है । इनकी चमक ऐसी थी कि जो ख़रीद न सका इन्हें छिनने के क्रम में नव अपराधी बनने लगा । बल्कि पूरे बिहार में बाइक छिनने वाले गैंग का उदय हुआ जिसमें नौजवान नव अपराधी शामिल थे । कई रास्तों और पुलों की पहचान भी होने लगी कि वहाँ से गुज़रने पर बाइक छिन लेता है सब ।


" कबले बिकाइल होंडा गाड़ी,हमार पिया मिलले जुआड़ी" इस गाने में पत्नी शिकायत कर रही है कि उसका पति कितना नालायक जुआड़ी निकला होंडा गाड़ी तक दाँव पर लगा दिया । जो दहेज़ में मिला था वो तो कब का बिक गया । होंडा को बाइक नहीं गाड़ी कहा जाता था । आज वही होंडा गाड़ी उपभोक्ता और युवाओं की पहचान से निकलते हुए बहुउपयोगी हो गया है । ग्रामीण भारत के उद्यमीकरण में छोटी सी भूमिका निभा रहा है । बाइक अब मुखिया नहीं दूधिया चलाते हैं । मुखिया बोलेरो,स्कार्पियो में घूमते हैं । इसमें भी योगदान राजदूत का ही है । जब मुखिया लोगों ने अपनी राजदूत बेची तो ख़रीदने वाले गाँव के उद्यमी थे । पुरानी बाइक से अपने पहले के मालिकों की तरह मोहब्बत न कर सके । बोरे की चट्टी सीट पर डालकर दूध का कनस्तर डाल दिया । किसी ने भारत की दुग्ध क्रांति में मोटरसाइकिल की भूमिका का अध्ययन नहीं किया है ।
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Source:- Reporter Ravish kumar
 
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