तीन नेशनल पार्टी होवै तो मजो आओगो

Arun Bhardwaj

-->> Rule-Breaker <<--
राजस्थान के एक ज़िले में एक पान वाले से बात हो रही थी । आपके सामने पेश कर रहा हूँ ।
सवाल- टीवी अख़बार देख कर तय करते हैं वोट किसे देना है ?


जवाब- नहीं जी । टाइम है न पैसा । पान की दुकान पर जो तरह तरह के बुद्धिजीवी आते हैं और बात करते हैं उससे अंदाज़ा लेते हैं कि देश कैसे चल रहा है ।


सवाल- वोट किस आधार पर देते हैं


जवाब- देखो जी पचास प्रतिशत तो स्वार्थ जाति और धर्म के आधार पर वोट देते हैं । पचास देश हित का सोच कर देते हैं ।


सवाल- हिन्दू मुस्लिम दंगों के बारे में सोचा है


जवाब- हाँ जी सोचा है । ये सब ऊपर से तय होता है । कुछ बातें जायज़ भी हैं । मुसलमान बच्चे पैदा करते हैं और अपने बच्चों को पढ़ाते भी नहीं है ं


सवाल- आपके माँ बाप ने आपको पढ़ाया?


जवाब- ना जी, साधन नहीं था ।


सवाल- पर मुसलमानों की आबादी के बढ़ने की दर हिन्दुओं से कम है । जनगणना की रिपोर्ट है ।


जवाब- ये नहीं मालूम मगर कुछ बात तो जायज़ हैं ।


सवाल- अच्छा भाषण और पैसे से लहर पैदा कर दे उस नेता को वोट देंगे


जवाब- ना जी । लहर का ज़माना गया । पैसे ख़र्च कर वोट नहीं मिलता । आदमी से फ़र्क पड़ता है । अब पुलिस तो सब जगह ख़राब है । लेकिन एक एसपी टाइट आ जाता है तो फ़र्क पड़ता है कि नहीं ।
सारे क्रीमिनल ज़िला छोड़ कर भाग जाते हैं ।


सवाल- कांग्रेस बीजेपी में से इस बार किसको


जवाब- इस बार तो बीजेपी को । वैसे एक बात कहूँ जी । तीन नेशनल पार्टी की ज़रूरत है । कांग्रेस अच्छा बुरा करती है तो बीजेपी की मौज हो जाती है । नाराज़ लोग उसकी तरफ़ आयेंगे । फिर बीजेपी से नाराज़ लोग पाँच साल बाद कांग्रेस को देते हैं । तीसरी नेशनल पार्टी होती और वो भी मज़बूत तो दोनों की साँसें फूली रहती । हम दोनों को हराकर एक तीसरी पार्टी को चुन देते । तब मजो आओगो । अभी ये गए तो वो आ गए । दोनों एक जैसे ही हैं ।




Posted by ravish kumar at Monday, October 07, 2013 15 comments:
 
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