अमीरी की रेखा

Arun Bhardwaj

-->> Rule-Breaker <<--

बहुत सालों तक मैं गरीबी की रेखा को खोजता रहा। इस चक्कर में फिल्म अभिनेत्री रेखा की फिल्में कई−कई बार देखीं। अब तो सुना है वह सांसद हो गयी हैं। फिर किसी ने कहा कि कभी−कभी नाम में भ्रम हो जाता है, इसलिए रेखा से मिलते जुलते नाम वाली राखी गुलजार और राखी सावंत की फिल्में भी देख डालींय पर गरीबी की रेखा नहीं मिली।
गणित के मामले में मैं उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का अनुयायी हूं। उन्होंने स्वयं लिखा है कि गणित पहाड़ की वह चोटी है, जिस पर वे कभी नहीं चढ़ सके। उनकी ही तरह मुझे भी गणित से सदा तकलीफ ही रही हैय और गणित में भी रेखागणित, तौबा−तौबा। उसमें नंबर देते समय हमारे अध्यापक ने कभी कोई रेखा खींचने का कष्ट नहीं किया। वे सदा दो शून्य से ही काम चला लेते थे। यद्यपि कापी बिल्कुल कोरी छोड़ने के कारण सफाई के दो नंबर पाने का मेरा हक बनता था।
खैर, जो भी होय पर बात रेखा की हो रही थी। गणित की ही तरह भूगोल में भी कर्क, मकर और विषुवत रेखा का चक्कर मुझे कभी समझ नहीं आया। जब बहुत सिर मारने पर भी मुझे ग्लोब पर कर्क रेखा नहीं मिलती थी, तो हमारे भूगोल के अध्यापक मुझे मैदान के चक्कर लगाने भेज देते थे। इस चक्कर में मेरे पैर की रेखाएं तो मजबूत हो गयींय पर हाथ की रेखा कमजोर रह गयी।
आप जानते ही हैं कि मनुष्य का भाग्य पैर की नहीं, हाथ की रेखाओं से ही बनता और बिगड़ता है। मैंने कई ज्योतिषियों को अपने पैर की रेखाएं दिखानी चाहींय पर कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ। मेरी समझ में नहीं आता कि बच्चा जन्म के समय हाथ की तरह पैर भी साथ लेकर आता है। दोनों में ही चार उंगलियां और एक अंगूठा होता है। हाथ में हथेली है, तो पैर में तलुवा। हाथ की उंगलियों में अंगूठी पहनते हैं, तो पैर की उंगली में बिछुवे। संकट के समय किसी को जान बचाकर भागना हो, तो पैर ही काम आते हैं। फिर भी हाथ की रेखाओं को न जाने क्यों अधिक महत्व दिया जाता है ? यदि हस्तरेखा की तरह पदरेखा विज्ञान का भी विधिवत अध्ययन हो, तो ज्योतिषियों का कारोबार रातोंरात दुगना हो जाए।
एक बार कुछ लोग पानी के जहाज से यात्रा कर रहे थे। रास्ते में एक जगह ऐसी आयी, जहां से होकर कर्क रेखा गुजरती थी। कागज पर बने मानचित्र में यह साफ दिखाया गया था। एक मौलाना ने जहाज के कप्तान से कर्क रेखा दिखाने का आग्रह किया। कप्तान ने बहुत समझाया कि यह रेखाएं काल्पनिक होती हैंय पर उसने जिद पकड़ ली।
इस पर कप्तान ने एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र के लैंस के नीचे एक सफेद धागा रखा और उसे कर्क रेखा बताकर मौलाना को दिखाया। उसे देखते समय मौलाना की दाढ़ी का एक बाल भी लैंस के नीचे पहुंच गया। इस पर वह खुशी से चिल्लाया− कप्तान साहब, यहां तो कर्क रेखा के साथ ही मकर रेखा भी दिखाई दे रही है।
कुछ ऐसा ही चक्कर इन दिनों गरीबी और अमीरी की रेखा को लेकर चल रहा है। योजना आयोग की कृपा से गरीबी की रेखा तो 28 और 32 रु0 के बीच में झूल रही हैय पर अमीरी की रेखा का पैमाना क्या है, यह किसी को नहीं पता।
कुछ लोग कहते हैं कि इसका पैमाना मुकेश अम्बानी का 4,000 करोड़ रु0 वाला मकान है, जिसमें पांच लोग रहते हैं और जिसका बिजली का मासिक बिल केवल 70 लाख रु0 आता है। कुछ का कहना है कि इसका पैमाना पांच करोड़ रु0 वाली कार है, जिसमें यात्रा के दौरान ही सोने और सुबह−शाम के जरूरी काम करने का भी प्रबन्ध है। ऐसी कार भारत में भी कुछ लोगों ने खरीद ली है। कुछ पांच लाख रु0 की घड़ी, दो लाख रु0 का मोबाइल और एक लाख रु0 वाली कलम को इसका पैमाना मानते हैं।
पर काफी सिरखपाई के बाद पिछले दिनों मुझे इस बारे में अंतिम सत्य पता लग ही गया। वह यह है कि अमीरी की रेखा मकान, गाड़ी, घड़ी, कपड़े या कलम से नहीं, शौचालय से तय होती है।

हमारे देश के महान योजना आयोग के कार्यालय में दो शौचालयों की मरम्मत में 35 लाख रु0 खर्च कर दिये गये। जरा सोचिये, मरम्मत में इतने खर्च हुए, तो नये बनने में कितने होते होंगे ? जब कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की, तो योजना आयोग के मुखिया श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इसे बिल्कुल ठीक बताया।
मैं श्री अहलूवालिया की बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं। बहुत से विचारकों का अनुभव है कि यही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां व्यक्ति बिल्कुल एकांत में कुछ देर बैठकर, शांत भाव से मौलिक चिन्तन कर सकता है। कई लेखकों को कालजयी उपन्यासों के विचार यहीं बैठकर आये हैं। श्री अहलूवालिया और उनके परम मित्र मनमोहन सिंह की जिन योजनाओं से देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है, उसके बारे में चिन्तन और मनन इतने आलीशान शौचालय में ही हो सकते हैं।
खैर, अमीरी की रेखा के बारे में मैंने तो निर्णय कर लिया हैय पर कई लोग अभी इस बारे में और शोध कर रहे हैं। यदि आपके निष्कर्ष इससे कुछ अलग हों, तो मुझे जरूर बतायें। मैं आपको भारत के आम आदमी की तरह, गरीबी की रेखा पर बैठे हुए, बड़ी हसरत से अमीरी की रेखा को ताकते हुए मिलूंगा।





स्रोतः विजय कुमार
स्थानः नई दिल्ली
तिथिः 15 जून 2012


 
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