'टेस्ट ट्यूब बेबीज़ की पीढ़ी में हो सकती है &#

इनफर्टिलिटी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली तकनीक इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का चलन काफी बढ़ रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों
ने इसके एक गंभीर पहलू पर ध्यान दिलाया है।

इंट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इन्जेक्शन (आईसीएसआई) आईवीएफ का एक अडवांस्ड ट्रीटमेंट होने के कारण इसका बहुतायत में इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन इस ट्रीटमेंट के एक पारखी डॉक्टर का कहना है कि इसका बेवजह यूज आने वाली जेनरेशन में भी इनफर्टिलिटी ला सकता है।

आईवीएफ तकनीक में अंडों का फर्टिलाइजेशन शरीर में न होकर लैब में किया जाता है। आईसीएसआई आईवीएफ की अडवांस्ड तकनीक है। इसमें एक सिंगल स्पर्म को सीधे ही अंडाणु के भीतर इंजेक्ट किया जाता है और वह अंडे के भीतर जमा हो जाता है। बेवजह दखल के कारण असामान्य स्पर्म भी अंडाणु को फर्टिलाइज करने में कामयाब रहते हैं जबकि सामान्य स्थिति में यह फिल्टर होकर बाहर हो जाते हैं।

आईसीएसआई में चूंकि ऐबनॉर्मल स्पर्म फिल्टर नहीं होते इसलिए इनफर्टिलिटी के जिनेटिक बनकर दूसरी जेनरेशन तक पहुंचने का खतरा रहता है। यह खुलासा अमेरिका में सान डिएगो के अमेरिकन असोसिएशन फॉर द अडवांसमेंट ऑफ साइंस में ब्रसल्ज यूनिवर्सिटी के प्रफेसर आंद्रे वान स्टेरटेगम ने किया।

आंद्रे इस ट्रीटमेंट में 18 साल पहले ही महारत पा चुके थे। आंद्रे के मुताबिक, शुरुआत से ही मैंने यह नोटिस किया कि कई क्लिनिक हर किसी के केस में आईसीएसआई का इस्तेमाल कर देते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह जरूरी है। खासकर जब मामला फीमेल इन्फटिर्लिटी का हो और स्पर्म काउंड नॉर्मल हो तो आईवीएफ की पारंपरिक पद्धति से काम चल सकता है और वही ज्यादा सेफ है।
 
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