Punjab News वकालत की पढ़ाई में उम्र आड़े आई

अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) से वकालत करना अब हर किसी के बस में नहीं होगा। यूनिवर्सिटी ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के उन नियमों को लागू कर दिया है, जिसमें वकालत के तीन वर्षीय कोर्स के लिए 30 वर्ष व पांच वर्षीय कोर्स के लिए 20 वर्ष अधिकतम आयु सीमा तय की गई है।

इस संबंध में जनहित याचिका पर मंगलवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल व जस्टिस जसबीर सिंह की खंडपीठ ने बार काउंसिल व यूनिवर्सिटी को 23 अप्रैल के लिए नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न इस नियम पर रोक लगा दी जाए।


गुरदासपुर निवासी नितिन गुप्ता की याचिका में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के क्लॉज 28 शेड्यूल तीन के लीगल एजूकेशन 2008 नियमों को खारिज करने की मांग की गई है। इन्हीं नियमों को ध्यान में रखते हुए जीएनडीयू ने अपने कैलेंडर में बदलाव कर वकालत के कोर्स के लिए अधिकतम आयु सीमा लागू कर दी है।


भेदभाव क्यों? आखिर कब पूरे होंगे 9 माह


पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 15 माह पहले 3 दिसंबर 2008 को डेरा सच्च सौदा प्रमुख संत राम रहीम सिंह का ट्रायल नौ माह में पूरा करने का निर्देश दिया था, लेकिन मामले में अभी कुल 70 गवाहों में से चार की ही गवाहियां हुई हैं।


मामले में मुख्य आरोपी डेरा मुखी को जमानत दी जा चुकी है तो उन्हें इस लाभ से वंचित क्यों रखा जा रहा है। रणजीत सिंह हत्याकांड में डेरा प्रमुख के सहआरोपी अवतार सिंह ने भेदभाव के आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट से जमानत दिए जाने की मांग की है।


इस पर जस्टिस एसएस सारों ने दो अप्रैल के लिए सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया कि हत्या के दो मामलों और दुष्कर्म के मामले में मुख्य आरोपी डेरा प्रमुख की अग्रिम जमानत याचिका हाईकोर्ट ने 17 सितंबर 2007 को स्वीकार कर ली थी।


इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने 25 अक्टूबर 2007 को नियमित जमानत याचिका स्वीकार कर ली, जबकि उन्हें यह राहत नहीं दी जा रही। डेरा प्रमुख को अंबाला स्थित विशेष अदालत में व्यक्तिगत पेशी से भी छूट दी गई। उन्हें चंडीगढ़ स्थित सीबीआई कार्यालय में भी पूछताछ के लिए कभी नहीं बुलाया गया। यही नहीं डेरा मुखी का लाई डिटेक्टर या नारको टेस्ट भी कभी नहीं किया गया जबकि वे इन सबसे गुजरे हैं।


उनका दिल्ली में दो बार पोलीग्राफी टेस्ट किया गया। एक ही आरोप में मुख्य आरोपी को राहत और सह-आरोपी को राहत न देना उनके अधिकारों की अनदेखी है।


‘एनआरआई दूल्हों से शादियों का पंजीकरण हो’


पंजाब में एनआरआईज की शादियों का पंजीकरण अनिवार्य करने के लिए सरकार प्रयासरत है। यह जबाव एनआरआई दूल्हों से शादी पर पॉलिसी बनाए जाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को पंजाब सरकार के गृह मंत्रालय ने दिया। हाईकोर्ट ने केंद्र के जवाब का इंतजार करते हुए मामले पर 21 मई के लिए सुनवाई तय की है। संसदीय कमेटी के हवाले से दिए जवाब में कहा गया कि जनवरी 2010 में लोकसभा में इस बारे में रिपोर्ट पेश की गई थी।


इसमें सभी धर्मो की ऐसी शादी पर अनिवार्य पंजीकरण की बात कही गई थी। इससे न केवल पीड़ित महिला अपना पक्ष मजबूती से रख सकेगी बल्कि दूतावास के जरिए दूल्हे पर भी नजर रखी जा सकेगी। इसके अलावा ऐसे दूल्हों के बारे में शिनाख्त की भी बात कही गई। भारतीय दूतावास के जरिए यह पहचान की जाए।


यही नहीं शादी का प्रमाण पत्र भी डुप्लीकेट जारी करने का सुझाव दिया गया ताकि पीड़ित महिला अपने अधिकारों की मांग कर सके। यह भी कहा कि उन देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते किए जाएं जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय लोग रह रहे हैं।



इन मामलों में स्पेशल सेल गठित किए जाने का सुझाव भी दिया गया है।
 
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