भारत रक्षा खर्च में अभी भी काफी पीछे

जरूरत हो या मजबूरी युद्ध के लिए सभी देशों को तैयार रहना होता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत उपस्थिति दर्ज करना हो तो भारत के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह सैन्य रूप से ताकतवर हो। इससे देश एशिया व विश्व में अपने हितों की रक्षा करने के साथ-साथ पड़ोसी मुल्कों से मिल रही चुनौतियों से भी निपटने में सक्षम हो पाएगा।

भारत की भौगोलिक स्थिति और पड़ोसी देशों से संबंध सामरिक रूप से काफी जटिल रहे हैं। पाकिस्तान और भारत के बीच के कटु रिश्ते तो जगजाहिर हैं। तीन युद्धों में पराजित होने के बाद भी पाक भारत को क्षति पहुंचाने की कोशिशों से बाज नहीं आ रहा है। भारत और चीन के बीच चलने वाली कूटनीतिक रस्साकस्सी से भी सभी परिचित हैं। वह पहले से ही देश के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाए बैठा है और लगातार आंखे दिखा रहा है।


इन सब चुनौतियों के बीच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने वर्ष 2010-11 का बजट पेश किया है। उन्होंने रक्षा बजट में करीब 13 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी करते हुए 2010-11 में देश की सुरक्षा पर किए जाने वाले खर्च को बढ़ाकर एक लाख 47 हजार 377 करोड़ रुपए कर दिया है। गौरतलब है कि रक्षा क्षेत्र के लिए पिछले बजट की तुलना में इस वर्ष करीब चार फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है। इसके बावजूद यह कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का करीब 2.5 प्रतिशत ही है। जब हम परमाणु क्षमता से लैश पड़ोसी मुल्कों को देखते हैं तो अपने को काफी पीछे पाते हैं। संसाधनों के लिए भारत से होड़ कर रहा चीन अपने जीडीपी का करीब सात फीसदी भाग रक्षा क्षेत्र में खर्च करता है तो वहीं पाकिस्तान सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने जीडीपी का पांच प्रतिशत भाग खर्च करता है।


खर्च में हमसे काफी आगे है चीन


सैन्य क्षमता बढ़ाने के मामले में चीन का रूख काफी आक्रामक रहा है। वर्ष 2008-2009 के लिए पेश बजट में चीन ने सैन्य जरूरतों के लिए किए जाने वाले खर्च में करीब 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की। इससे रक्षा क्षेत्र में किया जाने वाला खर्च 70 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन ने यह वृद्धि अपने सेना को अत्याधुनिक साजो सामान से लैश करने के लिए की।


कम नहीं है पाकिस्तान


आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा पाक भी सैन्य जरूरतों के लिए खर्च करने में कम नहीं है। पाकिस्तान ने अपने बजट में इसके लिए 210 बिलियन रुपए (पाकिस्तानी) का प्रावधान किया है। इसके अलावा पाकिस्तान को आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर भी बड़ी मात्रा में अमेरिकी सहायता मिल रही है। कुछ विशेषज्ञों का तो कहना है कि पाक अमेरिका से मिले 10 बिलियन डॉलर की मदद को भी अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।


विकसित देश करते हैं ज्यादा खर्च


पूरी दुनिया को हथियार बेचने वाले विकसित देश रक्षा क्षेत्र में खर्च करने में भी सबसे आगे हैं। अकेले अमेरिका सामरिक जरूरतों पर करीब 695 बिलियन खर्च करता है। यह खर्च कई देशों के कुल बजट से भी ज्यादा बैठता है। इस कड़ी में आगे देखें तो ब्रिटेन 54 बिलियन, फ्रांस 45 बिलियन, जापान 41 बिलियन और जर्मनी 35 बिलियन खर्च करता है।
 
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