दुनिया पर मंदी का साया और गहराया

$hokeen J@tt

Prime VIP
दुनिया पर मंदी का साया और गहराया



नई दिल्ली
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ( एसऐंडडी ) ने ग्लोबल स्लोडाउन बढ़ने की आशंका जता दी है। उसने 15 यूरोपीय देशों की रेटिंग को क्रेडिट वॉच कैटिगरी में रखा है। इनमें सबसे बेहतर ' ट्रिपल - ए ' रेटिंग वाले जर्मनी , फ्रांस , ऑस्ट्रिया , फिनलैंड और लग्जमबर्ग भी शामिल हैं। उसने साइप्रस और ग्रीस को इसमें शामिल नहीं किया है। इन दोनों की क्रेडिट रेटिंग पहले ही घटाई जा चुकी है। अगर दुनिया में मंदी गहराता है तो कंपनियां नौकरियों में कटौती भी कर सकती हैं।

रेटिंग घटने का नतीजा
अगर आने वाले समय में एसऐंडपी जर्मनी , फ्रांस या अन्य यूरोपीय देशों की क्रेडिट रेटिंग घटाती है तो उसका बड़ा असर होगा। मार्केट में सेंटिमेंट्स कमजोर हो जाएंगे। बॉन्ड्स और शेयर मार्केट की हालत पतली हो जाएगी। लोग बॉन्ड्स और शेयर बेचना शुरू कर देंगे। यूरोपीय सरकार और मार्केट दोनों ही बॉन्ड्स पर चलते हैं। अगर बॉन्ड्स और शेयर मार्केट गिरे तो सरकार की आमदनी और गिर जाएगी। इससे विकास रुकेगा और अर्थव्यवस्था में असंतुलन की स्थिति आ जाएगी।

भारत पर भी असर
इस वक्त डॉलर की तुलना में रुपया और यूरो जिस तरह कमजोर हो रहे हैं , उसने भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है। यूरोपीय देश आर्थिक रूप से कमजोर होंगे तो उनके मार्केट और मुद्रा दोनों कमजोर हो जाएंगे। भारतीय मार्केट में उनका निवेश बंद हो जाएगा। वहां भारत का एक्सपोर्ट प्रभावित होगा। रुपया और कमजोर होगा और खरीददारी महंगी हो जाएगी।

क्रेडिट रेटिंग का मतलब
क्रेडिट रेटिंग यह बताती है कि किसी देश की सरकार के पास कर्ज लेने और चुकाने की क्षमता कितनी है। जितना कर्ज वह ले रही है , क्या उसके पास उसे चुकाने के लिए इनकम के उतने सोर्स हैं ? क्या अपना खर्च निकालने के बाद वह कर्ज को सही तरीके से चुकाने की क्षमता रखती है ? कर्ज लेने के साथ - साथ सरकार की आमदनी में कितना इजाफा हो रहा है ? कर्ज लेकर वह जितनी योजनाएं चला रही है , उसका देश की अर्थव्यवस्था और मार्केट पर कितना पॉजिटिव असर हो रहा है ? सरकार की आमदनी कितनी बढ़ रही है ? इन्हीं सब पहलुओं को ध्यान में रखकर रेटिंग तय की जाती है।

क्रेडिट वॉच यानी नेगेटिव संकेत
जब किसी देश की आर्थिक हालत गंभीर हो जाती है तो उसे क्रेडिट वॉच की कैटिगरी में रखा जाता है। देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होने से उसके मार्केट में मनी फ्लो कम होने लगता है। सरकारी खजाने में कमी आने लगती है। सरकारी कर्ज बढ़ जाता है। आमदनी और खर्च के बीच फासले को पाटने के लिए सरकार को लक्ष्य से ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है। कर्ज चुकाने में अगर सरकार को भारी परेशानी होती है तो एसऐंडडी तुरंत उस देश की क्रेडिट रेटिंग कम नहीं करता। उसे सुधरने और हालात सुधारने का मौका दिया जाता है। एजेंसी यह देखती है कि वित्तीय संकट से उबरने के लिये सरकार क्या कर रहे हैं। वे जो सुधार योजनाएं ला रहे हैं , क्या उनसे हालात सुधरेगी। अगर हां , तो कब तक। अगर नहीं , तो हालात कितने और बिगड़ेंगे। इन्हीं का आकलन करने के बाद क्रेडिट रेटिंग में बदलाव किया जाता है।
 
Top