जीएम आलू ने फैलाई यूरोप में दहशत

जिनेटिकली मॉडिफाइड या जीएम फसलों को लेकर भारत में उठा तूफान अब यूरोप में भी गहरा रहा है। वहां मसला है जीएम आलू का। यूरोपियन यूनिय
न (ईयू) ने यूरोप में जीएम आलुओं की खेती को मंजूरी दे दी है। इसके विरोध में कुछ सदस्य राष्ट्रों ने दावा किया है कि इस फसल से टीबी की एक जानलेवा किस्म दुनिया भर महामारी बन कर उभरेगी।

इन जीएम आलुओं का नाम है जीएम एमफ्लोरा। ईयू ने अगले 12 सालों तक इसकी कमर्शल खेती को मंजूरी दी है। हालांकि ईयू के सभी देश फैसला लेने को आजाद हैं कि वे यह फसल उगाएं या नहीं। लेकिन इससे पर्यावरणवादियों को यह कहने का मौका मिल गया है कि यह आलू मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) को बढ़ावा देगा। एक एनवायरनमेंटल ग्रुप फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ कैंपेनिंग की प्रवक्ता का कहना है, इस जीएम आलू में एक एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट जीन डाला गया है।

जब इस आलू के छिलके को जानवर खाएंगे तो उनके मांस और दूध के जरिए यह इंसानों में भी पहुंच जाएगा। इस तरह हमारे शरीर में भी एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता तैयार हो जाएगी। इसका सीधा असर टीबी की दवाओं के काम करने पर पड़ेगा। यूरोपियन मेडिकल अथॉरिटी के मुताबिक, इस आलू में मौजूद जीन की बदौलत ऐसा एंजाइम पैदा होगा जो केनामाइसिन, नीओमाइसिन, बूटीरोसिन और जेंटामाइसिन नाम की एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर कर देगा।

ये दवाएं इसलिए अहम हैं क्योंकि ये एमडीआर टीबी के इलाज में इस्तेमाल होती हैं। एमडीआर टीबी इतनी खतरनाक है कि हर रोज भारत में एक हजार लोगों की जान इसकी भेंट चढ़ जाती है।

इस पूरे मामले का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यह आलू खाने के लिए नहीं उगाया जा रहा है। इसे स्टार्च और पेपर इंडस्ट्री में कमर्शल इस्तेमाल के लिए पैदा किया जाएगा। इसके गूदे के इस्तेमाल के बाद इसके छिलके को जानवरों को खिलाया जाएगा। जर्मनी की एक कंपनी बीएसएफ इस जीएम आलू को बनाएगी। फिलहाल, इसे जर्मनी में ही उगाया जाएगा लेकिन उम्मीद है कि चेक रिपब्लिक और स्वीडन भी इसकी खेती शुरू कर देंगे।

दूसरी तरफ ईयू के हेल्थ ऐंड कंस्यूमर पॉलिसी कमिश्नर का कहना है, मंजूरी तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर दी गई है। ऐसी आशंका असंभव लगती है कि इससे टीबी महामारी बनकर फैलेगा।
 
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