काबुल अटैक आईएसआई की करतूत

काबुल में शुक्रवार शाम भारतीय सैनिकों पर हुए हमले ने 2008 जुलाई में भारतीय दूतावास पर हुए
हमले की याद ताजा कर दी है जब भारतीय थलसेना के एक ब्रिगेडियर सहित दो राजनयिकों की मौत हो गई थी। इस बार के हमले के लिए फिर आईएसआई को यहां जिम्मेदार माना जा रहा है। इस हमले में नौ भारतीयों सहित 17 लोग मारे गए हैं।
इस घटना के बाद यहां प्रधानमंत्री स्तर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अन्य आला अधिकारियों के साथ विभिन्न नजरिए से चर्चा की गई और भविष्य में इस तरह की घटना से बचने के लिए समुचित सुरक्षा तैयारी पर भी विचार किया गया। काबुल में करीब दो हजार से अधिक भारतीय वहां चल रहे कल्याण और निर्माण कार्यों में सेवारत हैं जो भविष्य में भी तालिबान का निशाना बन सकते हैं। इसलिए भारतीय कर्मियों को डराने की रणनीति के तहत ताजा हमला करवाया गया लगता है।

यहां विचार किया जा रहा है कि भारतीयों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस के कुछ और जवान काबुल भेजे जाएं। अफगानिस्तान में भारत के चार काउंसेलेटों को भी अब सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है। पाकिस्तान यह आरोप लगाकर मांग करता रहा है कि ये काउंसेलेट बंद किए जाएं क्योंकि इनके जरिए बलूचिस्तान के अलगाववादियों और पाकिस्तान सरकार के खिलाफ सक्रिय गुटों को भारत मदद दे रहा है।

हमले की जिम्मेदारी अफगानिस्तान तालिबान के हक्कानी गुट के एक प्रवक्ता ने ली है। हक्कानी गुट की पाकिस्तान की सेना और आईएसआई से सांठगांठ है। इसलिए यहां माना जा रहा है कि काबुल में ताजा हमला के पीछे आईएसआई का ही हाथ हो सकता है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह हमला भारत को उकसाने के लिए किया गया है ताकि पाकिस्तान के साथ और तनाव बढ़े और पाकिस्तान को अपनी सेना अफगानिस्तान के मोर्चे से हटाकर भारत की सीमा पर लगाने का बहाना मिले। भारत पाक विदेश सचिव वार्ता में जिस तरह आतंकवाद के मसले पर भारत ने जोर दिया इसे लेकर भी भारत को सबक सिखाने की एक कोशिश आईएसआई की हो सकती है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक भारत की अफगानिस्तान में मौजूदगी तभी तक रह सकती है जब तक वहां अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय फौज मौजूद है।
 
Top