संसद में विपक्ष की भूमिका का कोई महत्त्व क&#23

भारतवर्ष के निर्माण के समय , यहाँ की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने हेतु संविधान सभा द्वारा संसद का प्रस्ताव रखा गया , जो की हर देश में होती है नीतिगत फैसलों के लिए! हमारी संसद भी विश्व की सर्वाधिक मजबूत, शशक्त व निर्णायक सांसदों में से एक है ! ये संसद जिसमे भारत की जनता का जनता द्वारा चुने गयी प्रतिनिधि , प्रतिनिधित्व करते हैं , कुछ अहम् मुद्दों पर बहस करते हैं, और जो बातें जनता के हित में होती हैं उनके लिए आवश्यक कानून या प्रस्ताव पारित करते हैं |
परन्तु पिछले कुछ समय से ये एक प्रचलन बन गया है बहस चाहे कितनी भी हो, मुद्दे वही पारित होंगे जो सरकार चाहेगी |
जो पार्टियाँ सत्ता में होती हैं , वो ते सोचती हैं की जनता ने उन्हें सरकार बनाने के लिए चुन कर भेजा है तो वो अब देश के विधाता बन गए हैं | इन्हें जरा भी परवाह नही होती की विपक्ष में जो लोग बैठे हैं, वो भी जनता द्वारा ही चुन कर आये हैं, और जनता का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं| फर्क बस कुछ सीटों का है या बहुमत का है | कुछ सरकारें तो अपने निजी स्वार्थ या अपनी महत्ता सिद्ध करने के उद्देश्य से निराधार कानूनों में संसोधन या नए नियम पारित कराती हैं | कोई सरकार आती है तो टाडा कानून लाती है , तो दूसरी सरकार पोटा विधेयक ! फिर जब पहली सरकार आती है तो वो पोटा समाप्त करती है | इसमें जनता के हित का कितना ध्यान रखा जाता है ये तो मेरी समझ से परे है, हां अनावश्यक रूप से बार बार नियमो में संसोधन व बहसबाजी से देश का कितना पैसा व समय ये प्रतिनिधि बर्बाद करते हैं ये एक अँधा व्यक्ति भी आंकलन कर सकता है | और ये तय है की जब दुबारा से फिर कभी विपक्ष सत्ता पक्ष में आएगा तो इन मुद्दों पे फिर से बहस होगी और संसोधन या निरस्त किये जाएँगे पुराने कानून |
क्यों न एक ही बार कोई ऐसा कानून बना दिया जाए जिससे की बार बार इन नियमो में संसोधन या निरस्तीकरण का अधिकार किसी स्थायी समिति के हाथो में आ जाए | हाँ हमारी संसद प्रस्ताव रख सकती हो, लेकिन निर्णय दोनों पक्षों की सहमती तथा जनता के हितों को ध्यान में रख कर हो | कानून बनाने की स्थायी समिति हर एक चीज का अध्ययन करे तथा जो सुझाव उसके हो उन पर बहस कर सकते हैं | परन्तु ऐसी निरर्थक बहस नहीं होनी चाहिए की रोज रोज संसद स्थगित करनी पड़े |
हमेशा ऐसा नही होना चाहिए की आप सत्ता पक्ष में हैं तो विपक्ष की हर बात से बैर मन के बैठ जाए | सुने उनकी बात और देश हित में विचार करे न की स्वहित में |
 
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