बिकनी पर राजनीति की रोटी क्यों सेकते हो ने&#23

समाज में संस्कृति को लेकर कसीदे हमेशा ही पढ़े जाते हैं । भारतीय होने के नाते हम भी इस पर खुली बहस कर सकते हैं (बिना राजनीति के ) । समाज की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं और इसलिए किसी एक ( सत्ताधारी ) को यह अधिकार नहीं कि वह अपना निर्णय सभी पर थोपे । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक महाविद्यालय
( जिसमें उनकी लड़की पढ़ती हैं ) के सामने लगे हुए विज्ञापन को इसलिए हटाने का आदेश दिया क्योंकि उन्हें वह अश्लील लगा । साथ संस्कृति बचाओ मंच ने अन्तःवस्त्र की दुकानों पर भी तोड़ फोड़ की जिसमें सरकार की भी सहभागिता नजर आती है । इस मंच ने यह ऐलान भी किया कि ऐसे विज्ञापन से संस्कृति को खतरा है । दुकानदारों को बिकनी पहने हुए पुतलों को हटाने की भी चेतावनी दे डाली जो उत्पात मचाया सो अलग ।

भारतीय समाज में अन्तः वस्त्र को लेकर जिस तरह से बवाल हो रहा है यह कोई नयी बात नहीं । साथ ही महिलाओं को पहनावे के लिए हमेशा रोक टोक की जाती है, कि ये पहनें......वो न पहनें वर्ना इज्जत खतरे में पड़ जायेगी । लेकिन पुरूषों पर यह बात शायद इसलिए नहीं लागू होती क्योंकि सामाजिक संरचना में पुरूषवादी समाज है । कोई पुरूष यदि लगोटे में रहता है तो वह साधु , महात्मा बन जाता है और यहां पर विज्ञापन भी लग जाये तो संस्कृति को खतरा हो जाता है। हमारे यहां कई कुंभ मेले होते हैं ......जिसमें कई लोगों को नंगा देखा जा सकता है और वह भी तब जब वहां हमारी मां , बहनें , और बहुएं गयी हो । तो क्या यहां पर सब कुछ सही हो रहा है ?
अब बात बाजार की करें तो अन्तःवस्त्र की दुकानों पर भी जरूरी नहीं है कि महिलाएं ही दुकान चलाती हो ... वहां पर एक आदमी भी हो सकता है और ऐसे में एक महिला बिकनी या ....? की मांग करती है तो समाज खतरे में पड़ जाता है । एक और बात देखें कई पुरूष भी ऐसे हैं जो महिलाओं कि जरूरतों के ये कपड़े दुकान पर खरीदते मिल जायेंगें .........तो क्या यहां पर यह कहा जाय कि अब संस्कृति को खतरा है ?

इसलिए मेरा मानना है कि अन्तःवस्त्र से सजे विज्ञापनों को तोड़ने से समाज को जरूर खतरा है । न कि इनके पहनने और बेचने से ।
बिकनी पर राजनीति की रोटी क्यों सेकते हो नेता जी ।?
 
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