शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले...

हमारी आज़ादी की लड़ाई में न जाने कितने नौजवान क्रन्तिकारी भारत माता के लिए फंसी का फंदा चूम कर शहीद हो गए ये पंक्तियाँ गाते गाते | आज भी भारत माँ की मानमर्यादा के लिए हमारे जाबांज सिपाही हँसते हुए शहीद हो रहे हैं | लेकिन क्या वाकई ये पंक्तियाँ उन वीर शहीदों के लिए थीं , उस पर थोडा भी अमल हो रहा है |
हमारी सरकार व्यस्त है अमेरिका के साथ कुछ वार्ता करने में जिसका पिछले कई सारे प्रधान मंत्रियों के कार्यकाल में कुछ हल नहीं निकल पाया | राजीव गाँधी की पुण्य तिथि पर देश के तमाम समाचार पत्रों में उनकी बड़ी बड़ी तस्वीर छपती है | विभिन्न कार्य योजनाओं का शिलान्यास उस दिन किया जाता है | पर इन शहीदों का क्या | इन सरकारों के पास उस दिन इतना समय भी नहीं होता की ५०(50 ) रुपये का कोई फूलों का गुलदस्ता चढ़ा दें |पिछले दिनों हमारे माननीय सांसदों व संसद की सुरक्षा में शहीद हुए नौजवानों की पुण्य तिथि थी | ५०० (500 ) से भी ज्यादा सांसदों वाली संसद से सिर्फ १३ ( 13 ) संसद श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुचे |
इसी प्रकार आतंकवादियों से लड़ते हुए पिछले वर्ष बाटला हॉउस में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चाँद शर्मा की पुण्य तिथि थी, परन्तु शायद ही सरकार को याद भी रहा हो | कुछ ऐसी ही दुर्गति महान क्रन्तिकारी शहीद उधम सिंह के परिवार व उनकी शहादत के साथ है |
यहाँ पंजाब सरकार को शायद अब उधम सिंह याद भी नहीं हैं, जिन्होंने जालियावालाँ बाग़ कांड के हत्यारे जनरल डायर से उसके देश में जाके उस से बदला लिया था , और हँसते हँसते फांसी के फंदे पे झूल गए थे | और तो और खुद जालियावालां बाग जो सैकड़ो हिन्दुस्तानियों की सहादत का प्रतीक है दुर्गति का शिकार है | इस से कई गुना ज्यादा महंगा और आलीशान दफ्तर अभी कांग्रेस ने हाल ही में बनाया है |
सरकार व्यस्त है देश के सभी एअरपोर्ट ( विमान पत्तन ) का नामकरण राजीव गाँधी या इंदिरा गाँधी के नाम पर करने में | क्या इनकी शहादत हमारे उन वीर सपूतों से ज्यादा है जो दुश्मनों की गोलिया अपने सीने पे बिना किसी दर्दके झेलते हैं | इन विमान पत्तनों पर विदेशी घड़ी व कपड़ो के कंपनियों के केंद्र ( आउटलेट ) होतें हैं | क्या हमारे शहीदों की एक भी तस्वीर इन विमान पत्तनों पर रखने की या कोई ऐसा केंद्र बनाने की नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती सरकार की, जिस से की यहाँ आने वाले विदेशियों और अपने देश वासियों को भी उन महान वीरो के संघर्ष की कहानी का पता चले |
यह सच है की केंद्र सरकार सभी शहीदों की पुण्य तिथि पर हर जगह जाकर श्रद्धांजलि अर्पित नहीं कर सकती , परन्तु क्या सरकार कोई ऐसा राष्ट्रीय दिवस घोषित नहीं कर सकती है , जिस दिन राज्य सरकारे कम से कम अपने वीर सपूतों की शहादत को एक साथ ही याद कर लें |
उत्तर प्रदेश सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर देती है यू . पी महोत्सव , या सैफई महोत्सव या अंबेडकर जयंती मानाने में | बाकी राज्य सरकारें भी कुछ ऐसा ही करती हैं |
क्या इन वीर शहीदों के नाम पर भी कोई ऐसा पर्व या त्यौहार नहीं होना चाहिए | जिस दिन राजीव गाँधी या इंदिरा गांधी की तरह इन शहीदों की भी बड़ी बड़ी तस्वीर सभी समाचार पत्रों में छपे , और इन्हें पैदा करने वाली माताओं , उनकी बहनो या सभी देश वासियों को देख के गर्व महसूस हो |
क्या वाकई इनकी चिताओं पर मेले लग रहे हैं |


समय है परिवर्तन का |
युवा नेतृत्व व सोच को आगे लाने का |
 
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