भारत में किसान के आर्थिक.........

भारत में किसान के आर्थिक समागिक विकास के लिए देश के शहरी क्षेत्र में महँगाई नितांत आवश्यक है ?


देश के शहरी क्षेत्र में महँगाई नितांत आवश्यक है ?????????????? आप को लगेगा की या तो मै पागल हु या आप के जख्मो पर नमक डाल रहा हू, ऐसा कुछ भी नहीं और ना ही मै गाव में रह रहा हू आप की तरह वेतन भोगी हू, दाल चवाल आटे चीनी सभी के दामो से वाकिफ हू आप थोड़ा हट के सोचिये एक और आटे के दामो पर आप और हम रोते है एक पिज्ज़ जो 50graam से भी कम आटे का होगा, आप में से कभी भी किसी ने नहीं कहा होगा महगा है | पेप्सी कोला के दामो पर किसी को ऐतेराज नहीं कितना भी लूटो खुली छुट है |
एक किसान जो ३ से 4 माह में एक - दो क्वंटल सब्जी या दाल या ६ माह में गेहू का उतपादन करता है और अब स्वयं की कीमत को पहिचानता है देश में हाय तोबा मची है | एक बहुराष्टिरिये कंपनी में या सरकारी सेवा करने वाले को एक माह में ३०००० से १००००० और १००००० से १०००००० की वेतन लेने का हक़ है तो उन किसानो को भी अपने बच्चो के साथ खुशहाली से जीवन यापन का पूरा हक़ है रही बात मजदूरों की मै तो कहता हू कि आम मजदूर की मजदूरी काम से काम ५०० रु. प्रती दिन होनी चाहिये |
आप जिस डीसल और पेट्रोल को ४५ से ५० रु लीटर में खरीदते है अनिल अम्बानी, सुनील मित्तल और रतन टाटा से लेकार पी.ऍम. ,सी ऍम. से लेकार अई. पी. एस. अई. ए एस. और सचिन,धोनी से लेकार प्रभु चावाला और प्रतिश नन्दी सभी को ४५ से ५० रु लीटर में ही डीसल और पेट्रोल मिलता है आप दिन में २ से १० लीटर और ये सभी १०० से १००० और १०००० लीटर उपयोग करते है सरकार किस पर और किन्हें सब्सिडी दे रही है और क्यों ??? क्या ये सभी बाजार के वास्तविक मूल्यों पर डीसल और पेट्रोल नहीं खरीद सकते है ????? अगर ये सभी १.५ से २० करोड़ की कार रख सकते है तो डीसल और पेट्रोल पर आम आदमी की तरह सब्सिडी क्यों ??????????खाद्य सामग्री के मूल्य तय करने का अधिकार किसानो के पास हो ना की सरकार के पास सरकार को विचोलिये कि भूमिका से हट जाना चाहिए और किसानो को बाजार की खुली प्रतियोगिता का हिस्सा वनाना होगा तभी देश में किसानो को हक़ मिलेगा,
किसानो को कर्ज और फिर कर माफी सरकारों का पाखंड है और ये पाखंडी लोग ही किसानो की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है अब जब कि किसानो को पता है की दामो का खेल उन के हाथो में है सरकार किसानो की मदद करने की जगह नए नए रस्ते खोजने में लगी है जब रिलांस, बिग बाजार , सुभीक्षा जैसे लाखो किसानो की कमाई पर हाथ साफ करते रहे तब सरकार चुप रहती है और आलू प्याज और डालो के दाम बढ़ाते ही चाहू और कोहराम क्यों मच जाता है हमारे हिसाब से तो अगर सरकार एस वक्त किसी भी वास्तु के आयात करनी की सोच रही है तो किसानो की पुन्हा दिल्ली पर धावा कर के संगठित होने का एहसाह सरकार और पूजी वादीयो को करवा देना चाहिए तभी जय जवान जय किसान का नारा चिर्तार्था होता प्रतीत होगा वरना तो किसान और किसानो की राजनीती ही होगी
 

pps309

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Few points are too good.

I don't think Indian farmer can compete in open market. There are 2 reasons behind that:
1) Indian farmer is so much under the burden of debt from aarthiya & others that he cannot wait longer for good price. He have to sell at time when produce is plenty in markets. Middleman will make money in this.
2) Indian farming is in-efficient due to lack of water harvesting, good farming machines and small size farms. Their cost of production is much more than competitors in Brazil & Argentina. In open market, imported grains will be cheaper than Indian.
 
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