मुद्दें और भी हैं मेरे दोस्त................

महाराष्ट्र के छात्रों को क्या हो गया है। दिन व दिन खुदकुशी के मामलेबढ़ते ही जा रहे हैं। परीक्षा में फेल होने के डर से और पढाई के दबाव के चलते बीते कुछ दिनों में महाराष्ट्र में खुदकुशी के कई मामले सामने आ चुके हैं। राज्य में तकरीबन 30 से अधिक मासूमों ने आत्महत्या की है औऱ एक के बाद एक आत्हत्याओं का सिलसिला जारी है। फिलहाल महाराष्ट्र को खुदकुशी के राज्य का दर्जा दे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लेकिन महाराष्ट्र के राजनेताओं को तो देखिए इन घटनाओं को रोकने के बजाय ओछी राजनीति कर रहे हैं। राजनीति भी कैसी टैक्सी ड्राइवर पर राजनीति। चाहे किसी पार्टी के राजनेता हों वो कभी न कभी घटिया बयान देकर सुर्खियां बटोर लेते हैं और बयान के दूसरे ही दिन अपने बयान से पलट जाते हैं। और सारा दोष मीडिया के माथे मढ़ देते हैं।
जरा सोचिए कि अगर छोटे-छोटे काम में लगे लोगों को यूं ही भाषा के नाम पर जलील करते रहे तो उस दिन क्या होगा जब इन कामों लगे लोग उनके ही घर काम करना छोड़ दें, वहां को लोगों के बच्चे को समय पर दूध न मिले, कपड़ों को धोना छोड़ दें, लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच पाये, तो क्या होगा। क्या भाषा के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को क्या इसका परिणाम मालूम शायद नहीं है। अगर ऐसा हो गया तो यूं समझ लीजिए की लाइफ लाईन पूरी तरह से ठप हो जाएगी और तब वहां की जनता का मोह भंग ऐसे लोगों सो हो जाएगा जो ऐसी ओछई राजनीति करने पर उतारू है। समय रहते सभी को चेत जाना चाहिए कि ऐसे मुद्दे राजनीति के क्षणिक ही होते हैं।
 
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