सर्वदलीय बैठक बेनतीजा, लोकपाल लटका?

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सर्वदलीय बैठक बेनतीजा, लोकपाल लटका?



नई दिल्ली।। लोकपाल पर राजनीतिक सहमति बनाने की सरकारी कोशिश बेनतीजा रही। सीबीआई, प्रधानमंत्री और ग्रुप सी के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने पर पार्टियों के बीच आम राय नहीं बन पाई। सबसे खास बात तो यह रही कि सर्वदलीय बैठक में सरकार ने सभी दलों की राय तो ले ली, लेकिन अपने पत्ते नहीं खोले।

चार घंटे की बैठक के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि लोकपाल विधेयक 22 दिसंबर को समाप्त हो रहे मौजूदा विंटर सेशन में पारित होगा या नहीं। वैसे, इस बात के संकेत भी हैं कि यदि विंटर सेशन में संभव नहीं हुआ, तो सरकार विशेष सत्र बुलाकर लोकपाल विधेयक पारित करा सकती है। हालांकि, कई दलों ने सरकार को हड़बड़ी में कोई भी फैसला करने से आगाह करते हुए कहा कि उसके दूरगामी असर होंगे।

सर्वदलीय बैठक के बाद सरकार के सामने संसद का गणित साफ है। यूपीए सरकार के साथ पूरी तरह एकजुट है, लेकिन विपक्ष तमाम मुद्दों पर बंटा है। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे को अगर छोड़ दें, तो सीबीआई से लेकर ग्रुप सी को लोकपाल के दायरे में लाने जैसे मुद्दों पर एनडीए में ही एक राय नहीं है। लेफ्ट पार्टियों और बीजेपी की राय तो सीबीआई और ग्रुप सी को लेकर अलग-अलग है ही।

रक्षा और आंतरिक सुरक्षा जैसे मसलों से जुड़े फैसलों को छोड़कर प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के सवाल पर यूपीए के भी कुछ दल राजी हैं। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में कुछ शर्तों के साथ लाने के संकेत देकर सरकार ने इस मसले पर गतिरोध पहले ही खत्म कर दिया है।

सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने पर सबसे ज्यादा पेच है। बीजेपी सीबीआई की जांच नहीं, बल्कि प्रशासनिक मसले को ही लोकपाल के दायरे में लाने की पक्षधर है। लेफ्ट पार्टियां सीबीआई को पूरी तरह लोकपाल के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, सरकार सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए कोलिजियम बनाने का प्रस्ताव रखेगी। इसके तहत सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति में लोकपाल, विपक्षी नेता, सीवीसी, पीएम और संबंधित केंद्रीय मंत्री रहेंगे, ताकि नियुक्ति पर कोई सवाल न रहे।

ग्रुप सी को लोकपाल के दायरे में रखने को सरकार बिल्कुल राजी नहीं है। हालांकि, बीजेपी इसके लिए दबाव बना रही है, तो लेफ्ट पार्टियां इसके पक्ष में नहीं है। अन्य छोटे दलों में भी इस मसले पर एक राय नहीं है। सीपीआई नेता गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि उनकी पार्टी मानती है कि गु्रप सी और डी के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जा सकता क्योंकि ऐसे करोड़ों कर्मचारी हैं। वहीं, सीपीएम नेता सीताराम एचुरी ने कहा कि ग्रुप सी और डी के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने कहा है कि इसके लिए अलग प्रणाली की जरूरत होगी। हमने सरकार से इस बारे में ठोस प्रस्ताव लाने को कहा है।

लेफ्ट पार्टियों ने इस बात पर भी बल दिया कि लोकपाल के कार्यालय को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

 
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