सूर्योदय से पहले ही पूजन, रोशनी और पटाखे

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दक्षिण के इस कोने में रोशनी के त्योहार की रंगत उत्तर भारत से बिल्कुल अलग है। लक्ष्मी पूजन परंपरा में नहीं। शिव की आराधना सर्वोपरि। दीवाली की रोशनी, पूजन और पटाखे सूर्योदय के पहले। रातों की रौनक नदारद। मौसम बरसात का। आसमान में घटाएं। कभी बूंदाबांदी। कभी चटखती धूप। इस समय तेज झड़ी।

मंगलवार तक सरकारी दफ्तर, स्कूल, कॉलेज खुले रहे। हम स्कूल टीचर गायत्री विश्वनाथ के घर पहुंचे, जो घर आते-आते भीग गई हैं। उन्हें रसोई में अधिरासम बनाने की जल्दी है। यह चावल व गुड़ की एक मिठाई है। वे कहती हैं, ‘दीवाली की सुबह हम घरों में संक्षिप्त पूजा के बाद मंंदिर में शिव की आराधना करेंगे। नैवेद्य के लिए हाथ का बना कुछ तो होना चाहिए।’ उनके पति वी.सी. विश्वनाथ संस्कृत पढ़ाते हैं। कई साल वाराणसी में रह चुके विश्वनाथ ने बताया कि यहां महाशिवरात्रि और श्रावण मास के विशेष पर्वों की महत्ता उत्तर भारत में दीवाली जैसी है। बेल्जियम से आईं स्प्रिचुअल थेरेपिस्ट बीइके लैरेमेंस और उनके भारतीय मूल के दत्तक पुत्र नूर मोहम्मद से मेेरी मुलाकात विश्व प्रसिद्ध रामनाथ स्वामी मंदिर के सामने हुई। दूसरी बार भारत आईं 60 वर्षीय लैरेमेंस 13 साल से स्प्रिचुअल एनर्जी पर शोध कर रही हैं। समुद्र में क्षितिज को देखते हुए वे कहती हैं, ‘यहां आकर महसूस किया कि रामेश्वरम् का ऊर्जा क्षेत्र अद्भुत है।’ 25 साल के नूर मोहम्मद पुट्टपर्थी के हैं। इन दिनों जर्मनी में आसन क्रिया एकेडमी से जुड़े हैं। वे कहते हैं कि प्रचलित धर्मों की बजाए प्रयोग में मेरा भरोसा है। रामेश्वरम् जैसे तीर्थ और दीवाली जैसे पर्व प्रयोगों के ही ऊर्जावान प्रतीक हैं। मानवीय शक्ति को जागृत करने के विराट प्रयोग।

मां-बेटे की इस जिज्ञासु जोड़ी केसाथ ही हम मंदिर में दाखिल हुए। 16 एकड़ में फैला करीब डेढ़ हजार साल पुराना विशाल देवालय। लंका प्रस्थान से पहले भगवान राम ने यहींं शिवलिंग की स्थापना का संकल्प पूरा किया था। राम की सेना के प्रमुख सेनापतियों, सहायकों और भारत के तीर्थों के नाम पर इसी प्रांगण में हैं 22 पवित्र कुंड। लैरेमेंस आनंदित होकर कहती हैं कि हमने मंदिर के सभी 22 कुंडों के स्नान किए। दीवाली के बारे में यहां आकर ही पता चला। इस अवसर पर यहां होना मेरे जीवन का स्मरणीय अनुभव है। और अब रामसेतु की ओर। रामेश्वरम् से 20 किमी दूर। देश के नक्शे पर सबसे नीचे श्रीलंका की ओर फैले टापुओं में। धनुष के आकार के टापुओं का आखिरी कोना। धनुषकोडि। तमिल में कोडि का अर्थ-अंतिम। रामसेतु का रास्ता यहीं से होकर है, जहां विभीषण का इकलौता मंदिर है। मान्यता है कि समुद्र के इसी किनारे विभीषण ने राम की शरण ली थी। नारियल के झाड़ों से लदे किनारों पर मछुआरों के घासफूस के घर। टीलों में दफन अंग्रेजों का बनाया भव्य नगर, जो 1964 के तूफान में उजड़ गया। शेष-१४ पर

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रेत से झांकतीं पुरानी रेल लाइनें, रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, गो-डाउन की इमारतें। हमारे साथ है एस. मुरुगेशन, जो एक शिपिंग कंपनी में काम कर चुका है। वह किनारे-किनारे हमें सात किलोमीटर और आगे उस आखिरी कोने तक ले जाता है, जहां से श्रीलंका की दूरी बचती है-सिर्फ 18 किलोमीटर। अथाह समुद्र के पार एकवायरलैस टॉवर दूर क्षितिज पर दिखाई देता है। मुरुगेशन उस तरफ संकेत करके बताता है कि वह टॉवर श्रीलंका की भूमि पर है। वह कई बार वहां गया है। धनुषकोडि से करीब दो किलोमीटर आगे समुद्र में कठोर पत्थर की वे सरंचनाएं अब भी साफ नजर आती हैं, जिन्हें राम सेतु के नाम से दुनिया जानती है।

वेनिस का मशहूर समुद्री यात्री मार्को पोलो (1254-1324) भी यहां से गुजरा था। यात्रा अनुभवों में उसने ‘द मिलियन’ में इस जगह को सेतुबंध रामेश्वर लिखा। इन दिनों करीब ढाई हजार करोड़ रुपए लागत की सेतु समुद्रम परियोजना के कारण यह जगह 2005 में विवाद का विषय बनी है। समुद्री परिवहन के लिए प्राचीन सेतु के कुछ हिस्सों को खत्म करने का प्रोजेक्ट। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से काम रुका है। भारत के इस छोर पर मुझे रामचरित मानस में लंका कांड का प्रसंग याद आ रहा है-बांधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देख कृपा निधि के मन भावा।। चली सेन कछु बरनि न जाई।

दिवाली के लिए हरिद्वार से आया गंगाजल

रामनाथ स्वामी मंदिर में तमिल ब्राह्मणों को नहीं, बल्कि पीढिय़ों से महाराष्ट्रियन ब्राह्मणों को पूजा-अनुष्ठान का अधिकार है। तमिल पुरोहितों का काम उन्हें सिर्फ निर्देशित करना है। गणेश वैद्य और गणपतिराम शर्मा का समूह हरिद्वार से आए गंगाजल को सहेज रहा है। दिवाली पर विशेष अभिषेक के लिए, जब शहर के लोग यहां सूर्याेदय से पहले इकट्ठा होंगे।

पं. वैद्य कहते हैं, ‘राम ने यहीं घोषणा की थी कि शिव के समान दूसरा कोई उन्हें प्रिय नहीं है और गंगाजल से यहां शिव का अभिषेक करने वाले जीवन-मरण से मुक्ति के अधिकारी होंगे। दिवाली पर राम के आदेश का पालन यहां सबसे पहले होता है। लक्ष्मी पूजन से ज्यादा इसी का महत्व है।’

घरों से ज्यादा रौनक सिनेमाघरों में

रामनाथपुरम् से रामेश्वरम् जाते हुए मैं यह देखकर चौंका कि घरों से ज्यादा रौनक सिनेमाघरों में है। हर कहीं दिवाली के दिन रिलीज होने वाली फिल्मों की चर्चा। रजनीकांत के अलावा तीन सितारों का जबर्दस्त क्रेज। ये हैं-विजय, सूर्या और विक्रम। इन तीनों की फिल्में रिलीज होने का उत्साह अद्भुत है। सुबह का पहला स्पेशल शो हर जगह हाउस फुल है।



विजयेंद्र सरस्वती एजूकेशन सेंटर के प्रमुख आर. मुथुकुमार ने बताया, ‘दिवाली के दिन अधिकतर तमिल युवा मित्रों, पड़ोसियों और परिजनों के साथ सिनेमाघरों में नजर आएंगे। यह हमेशा का रिवाज है। फिल्में हमारे लिए उत्सव से कम नहीं हैं। कई फिल्में पांच महीने तक परदे से उतरती नहीं हंै।’
 
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