वासना को प्रेम समझने की नादानी

'MANISH'

yaara naal bahara
असली हीरे की खोज में कितनो ने ही कांच को गले लगाने की भूल की है। इसमें असली हीरे का क्या कसूर जो कोई कांच से घायल होकर हीरे को बदनाम करे। कुछ ऐसी ही दुविधा प्रेम-मोहब्बत के क्षेत्र में भी देखने को मिलती है। ढ़ाई अक्षर प्रेम के.., मोहब्बत यानि खुदा की इबादत..., प्रेम यानि ईश्वर का वरदान.....। ऐसे और भी जाने कितने ही ऊंचे आदर्शों के धोके में इंसान मन के बहकावे में आ जाता है।
कुछ तो उम्र का रसायन-विज्ञान और कुदरती आकर्षण ऐसा होता है कि इंसान इसमें डूबता ही जाता है। मन को बहलाने और बुद्धि को भ्रमित करने के लिये इंसान इस डूबने को गंगा में डुबकी लगाना मान लेता है।

आइये जाने इंसानी मनोविज्ञान के उन गुप्त फार्मूलों को, जो प्रेम और वासना की असली पहचान से पर्दा उठाते हैं:-


- प्रेम हमेशा बढ़ता है, जबकि वासना समय के साथ-साथ घटती-बढ़ती रहती है।
- वास्तविक प्रेम कभी बदले के लिये नहीं होता, जबकि वासना की यदि पूर्ति न हो तो वह तत्काल क्रोध में बदल जाती है।
- प्रेम में मन और भावनाओं की नजदीकी अहम होती है, जबकि वासना में शारीरिक समीपता का आकर्षण प्रबल होता है।
- मदद, माफी, प्रोत्साहन, त्याग और आन्तरिक प्रसन्नता ये सभी प्रेम का परिवार हैँ।
- क्रोध, चिड़चिड़ाहट, डर, भय, रोग, घ्रणा और आत्मग्लानी ये सभी वासना के सगे संबंधी हैं।
 
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